सुप्रीम कोर्ट ने बोतलबंद पानी की गुणवत्ता से संबंधित एक जनहित याचिका (PIL) पर सुनवाई से इनकार कर दिया है। अदालत ने इस याचिका को ‘अमीरों का फोबिया’ करार देते हुए इसे शहरी केंद्रित सोच बताया। यह याचिका उन लोगों ने दायर की थी जो भारत में बोतलबंद पानी के मानकों को अंतरराष्ट्रीय स्तर के अनुसार लाने की मांग कर रहे थे।
अमीरों की मुकदमेबाजी करार दिया
मुख्य न्यायाधीश (CJI) सूर्यकांत ने याचिकाकर्ता की वकील अनीता शेनॉय से सवाल किया कि जब देश की बड़ी आबादी को पीने का पानी भी उपलब्ध नहीं है, तो बोतलबंद पानी के मानकों की बात करना कितना उचित है? उन्होंने कहा, “इस देश में पीने का पानी कहां है? लोगों को पीने के लिए साधारण पानी तक नहीं मिलता, ऐसे में बोतलबंद पानी की गुणवत्ता तो बाद की बात है। यह सब ‘अमीरों की मुकदमेबाजी’ है।”
गांधी जी का उदाहरण और जमीनी हकीकत की सख्त सलाह
सीजेआई सूर्यकांत और जॉयमाल्या बागची की पीठ ने याचिकाकर्ता को एक अहम सलाह दी। बेंच ने महात्मा गांधी का उदाहरण देते हुए कहा कि गांधी जी जब दक्षिण अफ्रीका से लौटे थे, तो उन्होंने भारत में लोगों की वास्तविक समस्याओं को समझने के लिए पूरे देश की यात्रा की थी। कोर्ट ने याचिकाकर्ता को भी सलाह दी कि वे देश के उन हिस्सों में जाएं जहां लोग पानी की एक-एक बूंद के लिए संघर्ष कर रहे हैं, तब उन्हें असल भारत की तस्वीर समझ में आएगी।
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क्या था PIL का मुद्दा?
यह जनहित याचिका भारत में बोतलबंद पानी के मानकों को वैश्विक स्वास्थ्य संस्थान जैसे WHO और यूरोपीय संघ (EU) के मानकों के बराबर लाने की मांग कर रही थी। याचिकाकर्ता का कहना था कि बोतलबंद पानी में मौजूद प्लास्टिक के रसायन स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकते हैं। हालांकि, कोर्ट ने इसे शहरी, प्रौद्योगिकी केंद्रित और उपभोक्ता केंद्रित मुद्दा मानते हुए इस पर सुनवाई करने से इनकार किया।
ग्रामीण इलाकों की स्थिति और अदालत का दृष्टिकोण
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि देश के कई हिस्सों में आज भी लोग जमीन से पानी निकालकर पीते हैं, और उन्हें कोई समस्या नहीं होती। सीजेआई ने इसे ‘शहरी सोच’ करार देते हुए याचिका को खारिज कर दिया। अदालत ने याचिकाकर्ता से कहा कि वे अपनी शिकायतों को भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (FSSAI) के पास भेज सकते हैं, जो इस मुद्दे पर उचित कार्रवाई कर सकता है।
कोर्ट का रुख और याचिकाकर्ता का कदम
कोर्ट के रुख को देखते हुए याचिकाकर्ता ने PIL वापस ले लिया। हालांकि, अदालत ने उन्हें अपनी शिकायतें FSSAI के पास दर्ज करने की छूट दी। यह मामला दिखाता है कि जहां एक ओर शहरी इलाकों में बोतलबंद पानी की गुणवत्ता पर जोर दिया जा रहा है, वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में पानी की भारी किल्लत से जुड़ी समस्याएं अहम हैं।


