भारत में परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में बड़ा बदलाव होने जा रहा है। केंद्र सरकार ने लोकसभा में सिविल न्यूक्लियर कानून में संशोधन का प्रस्ताव पेश किया है, जिससे दशकों से चला आ रहा सरकारी एकाधिकार खत्म होने की दिशा में कदम बढ़ाया गया है। यदि यह विधेयक संसद से पारित हो जाता है, तो भविष्य में निजी कंपनियां और कुछ विशेष परिस्थितियों में आम नागरिक भी परमाणु ऊर्जा से जुड़ी गतिविधियों में भागीदारी कर सकेंगे।
केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह ने इस संबंध में विधेयक पेश किया, जिस पर संसद में चर्चा शुरू हो चुकी है। सरकार का उद्देश्य वर्ष 2047 तक 100 गीगावॉट परमाणु ऊर्जा उत्पादन के लक्ष्य को हासिल करना है, ताकि बढ़ती ऊर्जा मांग को स्वच्छ और टिकाऊ तरीके से पूरा किया जा सके।
क्या है नए विधेयक का नाम और उद्देश्य
सिविल न्यूक्लियर कानून में बदलाव के लिए लाए गए इस प्रस्तावित कानून को
Sustainable Harnessing and Advancement of Nuclear Energy for Transforming India (SHANTI), 2025 नाम दिया गया है। इसके तहत मौजूदा परमाणु ऊर्जा अधिनियम, 1962 और परमाणु क्षति के लिए नागरिक दायित्व अधिनियम, 2010 को हटाकर एक नया कानूनी ढांचा तैयार करने का प्रस्ताव है।
- Advertisement -
अब तक भारत में परमाणु पदार्थ, संयंत्र और उपकरणों पर पूरी तरह सरकार का नियंत्रण रहा है। नए विधेयक के जरिए निजी क्षेत्र की भागीदारी को कानूनी मान्यता दी जाएगी।
निजी कंपनियों को क्या मिलेगा अधिकार
विधेयक के अनुसार, निजी कंपनियां सरकारी संस्थाओं के साथ जॉइंट वेंचर में या आपसी साझेदारी के जरिए परमाणु संयंत्र के निर्माण और संचालन के लिए लाइसेंस हासिल कर सकेंगी। इसके साथ ही इन्हें परमाणु ईंधन के परिवहन और संचालन से जुड़ी सीमित गतिविधियों की अनुमति भी दी जाएगी।
हालांकि परमाणु संवर्धन, प्रयुक्त ईंधन के प्रबंधन और हेवी वाटर उत्पादन जैसे संवेदनशील कार्य अब भी केंद्र सरकार के सीधे नियंत्रण में रहेंगे।
सुरक्षा और निगरानी कैसे होगी
नए कानून में परमाणु ऊर्जा नियामक बोर्ड (AERB) को पहले से अधिक अधिकार दिए गए हैं। अब सुरक्षा मानकों, रेडिएशन नियंत्रण, परमाणु कचरे के निपटान, निरीक्षण और आपात स्थिति से निपटने की जिम्मेदारी AERB के पास होगी।
इसके अलावा केंद्र सरकार को यह अधिकार भी होगा कि किसी संभावित खतरे की स्थिति में वह रेडियोएक्टिव पदार्थों या उपकरणों के नियंत्रण को अपने हाथ में ले सके।
हादसे की स्थिति में जिम्मेदारी किसकी होगी
विधेयक में परमाणु दुर्घटनाओं को लेकर स्पष्ट प्रावधान किए गए हैं। किसी भी परमाणु हादसे की स्थिति में सबसे पहले संयंत्र का संचालक जिम्मेदार माना जाएगा और उसे नुकसान की भरपाई करनी होगी।
हालांकि अत्यधिक खतरनाक प्राकृतिक आपदा, सशस्त्र संघर्ष, आतंकवाद, गृह युद्ध या विद्रोह जैसी परिस्थितियों में संचालक की जिम्मेदारी सीमित हो सकती है।
यदि नुकसान की राशि तय सीमा से अधिक होती है, तो अतिरिक्त मुआवजे की जिम्मेदारी केंद्र सरकार की होगी।
सरकार के लिए क्यों अहम है यह कदम
सरकार का मानना है कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, डेटा सेंटर्स और औद्योगिक उत्पादन जैसी ऊर्जा-खपत वाली तकनीकों के बढ़ते उपयोग के बीच परमाणु ऊर्जा भारत की स्वच्छ ऊर्जा जरूरतों का मजबूत आधार बन सकती है। निजी निवेश से न केवल उत्पादन क्षमता बढ़ेगी, बल्कि तकनीक और प्रबंधन में भी सुधार आएगा।
इमेज से निकाली गई मुख्य जानकारी
परमाणु ऊर्जा से जुड़े विधेयक में पहली बार निजी कंपनियों को परमाणु संयंत्र के निर्माण और संचालन के लिए लाइसेंस देने का प्रस्ताव है।
निजी कंपनियां सरकारी संस्थाओं या अन्य कंपनियों के साथ जॉइंट वेंचर के जरिए काम कर सकेंगी।
परमाणु ईंधन के लाने-ले जाने की अनुमति दी जाएगी, लेकिन कुछ गतिविधियों पर पाबंदी रहेगी।
परमाणु संवर्धन, खर्च हुए ईंधन का प्रबंधन और हेवी वाटर उत्पादन केंद्र सरकार के नियंत्रण में ही रहेगा।
कुल मिलाकर, सिविल न्यूक्लियर कानून में प्रस्तावित यह बदलाव भारत की ऊर्जा नीति में एक निर्णायक मोड़ माना जा रहा है। जहां एक ओर इससे ऊर्जा उत्पादन को नई गति मिलने की उम्मीद है, वहीं दूसरी ओर सुरक्षा और जिम्मेदारी को लेकर सख्त नियमों का प्रावधान भी किया गया है।


