राजस्थान हाई कोर्ट का अहम फैसला: बालिगों को आपसी सहमति से लिव-इन में रहने का अधिकार
राजस्थान हाई कोर्ट ने लिव-इन रिलेशनशिप को लेकर एक महत्वपूर्ण निर्णय दिया है, जिसमें स्पष्ट कहा गया है कि यदि युवक और युवती दोनों बालिग हैं, तो वे आपसी सहमति से लिव-इन में रह सकते हैं, चाहे उनकी वैवाहिक आयु पूरी न हुई हो। कोर्ट ने यह भी दोहराया कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता और सुरक्षा किसी भी स्थिति में सीमित नहीं की जा सकती।
व्यक्तिगत स्वतंत्रता सर्वोपरि: कोर्ट ने दिया स्पष्ट संदेश
जस्टिस अनूप कुमार ढांड की एकल पीठ ने कहा कि संविधान का अनुच्छेद 21 हर नागरिक को जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार देता है, और यह अधिकार समाज या परिवार की आपत्तियों के आधार पर खत्म नहीं हो सकता। अदालत ने कहा कि राज्य का दायित्व है कि वह ऐसे कपल की सुरक्षा सुनिश्चित करे, चाहे वे शादीशुदा हों या नहीं।
कोटा के युवक-युवती की याचिका पर आया निर्णय
यह आदेश कोटा के एक 18 वर्षीय युवती और 19 वर्षीय युवक की याचिका पर आया, जिन्होंने पुलिस सुरक्षा की मांग की थी। युवती बालिग होने के साथ विवाह योग्य आयु तक पहुंच चुकी थी, जबकि युवक के लिए वैवाहिक आयु पूरी होने में दो वर्ष बाकी थे। कपल ने यह भी बताया कि उन्होंने अक्टूबर 2025 में एक लिव-इन एग्रीमेंट बनवाया था, लेकिन लड़की के परिवार के विरोध और धमकियों के बावजूद पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की।
- Advertisement -
राज्य सरकार की दलील खारिज
सरकारी पक्ष ने कहा कि लड़का विवाह योग्य नहीं है, इसलिए लिव-इन की अनुमति देना उचित नहीं होगा। कोर्ट ने इस तर्क को अस्वीकार करते हुए कहा कि केवल विवाह योग्य आयु न होने से उनके मौलिक अधिकार खत्म नहीं किए जा सकते। अदालत ने पंजाब-हरियाणा हाई कोर्ट के निर्णय का हवाला देते हुए कहा कि बालिग होने पर पुलिस सुरक्षा देना राज्य की बाध्यता है।
लिव-इन संबंध अवैध नहीं: कोर्ट ने स्पष्ट किया
हाई कोर्ट ने यह भी कहा कि लिव-इन रिलेशनशिप भारतीय कानून में अवैध नहीं है। घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 में भी ऐसे संबंधों को मान्यता दी गई है, और इस तरह के पार्टनर्स तथा उनके बच्चों को भी संरक्षण प्रदान किया जाता है। कोर्ट के अनुसार, लिव-इन को अपराध के रूप में नहीं देखा जा सकता।


