श्रीडूंगरगढ़ में एक महत्वपूर्ण मामले में अदालत ने 60 वर्षीय बुजुर्ग महिला को उनका वैधानिक अधिकार दिलाते हुए बड़ा फैसला सुनाया। आड़सर बास की रहने वाली इंद्रादेवी झंवर द्वारा दायर याचिका पर कोर्ट ने उनके स्वामित्व वाले मकान को कब्जा मुक्त कर उन्हें सौंपने के आदेश दिए। आदेश के पालन में पुलिस ने मौके पर पहुंचकर उनके बेटे और बहू को घर से बाहर किया तथा मकान का कब्जा इंद्रादेवी को सौंप दिया।
मामला कैसे पहुंचा अदालत तक
एडवोकेट राधेश्याम दर्जी के अनुसार, इंद्रादेवी के नाम खरीदा गया मकान उनके बेटे दिनेश झंवर और बहू रीना झंवर के कब्जे में था। कथित दबाव और विवाद के चलते इंद्रादेवी को अपने ही घर में रहने नहीं दिया जा रहा था, जिसके बाद उन्होंने दीवानी वाद दायर किया।
अदालत ने 17 जनवरी 2024 को ही मकान खाली करवाने का आदेश दिया था, लेकिन अनुपालन न होने पर इंद्रादेवी ने कोर्ट में अवमानना की शिकायत दर्ज करवाई।
कोर्ट ने माना आदेश की अवमानना
वरिष्ठ सिविल न्यायाधीश एवं अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट हर्ष कुमार ने अवमानना को गंभीर मानते हुए डिक्री जारी की और श्रीडूंगरगढ़ थानाधिकारी को मकान खाली कराने का निर्देश दिया। अदालत ने स्पष्ट कहा कि वैधानिक स्वामित्व रखने वाली महिला का अधिकार किसी भी प्रकार से प्रभावित नहीं होना चाहिए।
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पुलिस ने मौके पर कराई कार्रवाई
अदालत के निर्देशानुसार 3 दिसंबर 2025 को एसआई पवन शर्मा, हैड कांस्टेबल रामस्वरूप बिश्नोई, महिला कांस्टेबलों और आरएसी जवानों की टीम ने मौके पर कार्रवाई की। टीम ने मकान को कब्जा मुक्त कर इंद्रादेवी को सौंप दिया।
मामला अब भी जारी
इंद्रादेवी की पैरवी एडवोकेट राधेश्याम दर्जी और एडवोकेट गोपाल पारीक ने की। बताया जा रहा है कि दोनों पक्षों के बीच आपसी विवाद को लेकर फौजदारी प्रकरण भी दर्ज हैं, जिनकी सुनवाई कोर्ट में जारी है।
यह फैसला बुजुर्गों के संपत्ति अधिकारों के संरक्षण की दिशा में एक महत्वपूर्ण उदाहरण माना जा रहा है।

