एसआईआर पर देशभर में सियासी टकराव तेज, बीएलओ बने बहस का केंद्र
एसआईआर को लेकर देशभर में राजनीतिक हलचल तेज हो गई है। सत्तारूढ़ भाजपा इसे आवश्यक सुधार और शुद्धिकरण की प्रक्रिया बताकर समर्थन कर रही है, वहीं विपक्षी दल इसे भाजपा की रणनीति बताते हुए तीखा विरोध जता रहे हैं। कुछ दलों का आरोप है कि एसआईआर का उद्देश्य विशेष समुदायों के वोट प्रभावित करना है, जबकि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी इसे लेकर लगातार केंद्र सरकार पर हमला बोल रही हैं।
बीएलओ पर बढ़ा काम का बोझ, वेतन बढ़ाने की चर्चा
एसआईआर प्रक्रिया के चलते देशभर में बूथ लेवल ऑफिसर्स यानी बीएलओ का कार्यभार काफी बढ़ गया है। बढ़ते दबाव को देखते हुए उनके वेतन में सुधार की चर्चाएं भी सामने आ रही हैं। कई राज्यों में बीएलओ संगठनों ने यह मुद्दा गंभीरता से उठाया है और उचित मानदेय तथा सुरक्षित कार्य वातावरण की मांग की है।
सोशल मीडिया पर उभरा बीएलओ हैशटैग, हजारों पोस्ट वायरल
एसआईआर विवाद सोशल मीडिया पर भी तेजी से छाया हुआ है। एक्स प्लेटफॉर्म पर बीएलओ हैशटैग लगातार ट्रेंड में बना हुआ है और अब तक हजारों पोस्ट इसके तहत डाली जा चुकी हैं। कई यूजर बीएलओ के कथित निधन के मामलों को साझा कर सरकार से जवाबदेही की मांग कर रहे हैं।
कुछ पोस्टों में दावा किया गया कि एसआईआर के बढ़ते कार्यभार के कारण कई बीएलओ की मौत हुई, हालांकि इन दावों की आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है। कुछ यूजर उन बीएलओ के लिए एक करोड़ रुपये के मुआवजे और परिजनों को सरकारी नौकरी देने की मांग कर रहे हैं, जिनकी मौत को उन्होंने ‘वर्क लोड’ से जोड़कर उठाया है।
विपक्ष का आरोप, “एसआईआर एक तानाशाही फैसला”, भाजपा का पलटवार
कांग्रेस सहित कई विपक्षी दल एसआईआर को प्रधानमंत्री मोदी का कठोर और तानाशाही निर्णय बता रहे हैं। उनका कहना है कि इस प्रक्रिया को बिना पर्याप्त तैयारी और सुरक्षा उपायों के लागू किया गया, जिससे बीएलओ पर मानसिक और शारीरिक दबाव बढ़ा है। भाजपा इन आरोपों को सिरे से खारिज करते हुए कह रही है कि एसआईआर पारदर्शिता और सही मतदाता सूची सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक कदम है।
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सात दिन और बढ़ी समय सीमा, कुछ बीएलओ के सुसाइड नोट बने चर्चा का विषय
एसआईआर प्रक्रिया की समय सीमा सात दिन और बढ़ा दी गई है, ताकि फील्ड स्तर पर काम कर रहे कर्मचारी अपने कार्य पूरे कर सकें। इस बीच कुछ बीएलओ द्वारा आत्महत्या के मामलों में सुसाइड नोट सामने आए, जिनमें कथित तौर पर एसआईआर के अत्यधिक वर्कलोड का जिक्र पाया गया। ये घटनाएं सोशल मीडिया पर व्यापक चर्चा का कारण बनी हुई हैं और प्रशासनिक स्तर पर गंभीर सवाल खड़े कर रही हैं।
