रक्षामंत्री राजनाथ सिंह द्वारा हाल ही में सिंधी समाज के एक कार्यक्रम में दिया गया बयान सीमांत राजस्थान के इलाकों और सिंध से आए पाक विस्थापितों के बीच चर्चा का बड़ा विषय बन गया है। अपने संबोधन में उन्होंने यह कहा कि सिंध ऐतिहासिक रूप से भारत का हिस्सा रहा है और भविष्य में भौगोलिक परिस्थितियां किस रूप में बदल जाएंगी, इसका पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सकता। इस टिप्पणी ने उन परिवारों में नई उम्मीद और बेचैनी दोनों जगा दी है, जिनकी जड़ें आज भी सिंध से जुड़ी हैं।
सीमांत जिलों में बढ़ी चर्चा
बाड़मेर और जैसलमेर में बसे एक लाख से अधिक पाक विस्थापितों के लिए यह बयान भावनात्मक महत्व से भरा है। सिंध से आए इन परिवारों के रिश्तेदार आज भी पाकिस्तान में रहते हैं। थार एक्सप्रेस बंद होने से आवाजाही में आई दूरी और दोनों देशों के बीच बढ़ता तनाव इन समुदायों को और संवेदनशील बनाता है। इसीलिए रक्षामंत्री का बयान इन परिवारों के दिलों को सीधे छू गया है।
सिंध से लगातार पलायन की कहानी
1947 के विभाजन से लेकर 1965 और 1971 के युद्धों तक, हजारों परिवार सिंध से भारत आए। बाद के वर्षों में भी धार्मिक प्रताड़ना, जबरन धर्मांतरण, अपहरण और असुरक्षा की वजह से बड़ी संख्या में लोग भारत की ओर रुख करते रहे हैं। अधिकांश को अब भारत की नागरिकता मिल चुकी है, लेकिन सिंध की मिट्टी से जुड़ाव आज भी कायम है।
सिंध में हिन्दुओं पर बढ़ते अत्याचार
सिंध के कई जिलों—छाछरो, मीरपुर खास, मिठी, खिपरो सहित अन्य क्षेत्रों—में हिन्दू समुदाय लगातार दबाव में है। समुदाय के सदस्यों का कहना है कि लड़कियों का अपहरण, जबरन विवाह और धर्म परिवर्तन आम बात हो चुकी है। एक समय पाकिस्तान की कुल आबादी में 14 प्रतिशत रहे हिन्दू अब मात्र 2 प्रतिशत के करीब रह गए हैं, जिनका बड़ा हिस्सा अभी भी सिंध में है।
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आर्थिक और सामाजिक पिछड़ापन
सिंध में पानी की कमी, अव्यवस्थित सिंचाई और विकास की धीमी रफ्तार लोगों की परेशानियां बढ़ा रही हैं। सिंधु जल समझौते से जुड़ी विसंगतियां और आंतरिक राजनीतिक खींचतान के कारण सिंध के ग्रामीण इलाकों में हालात और कठिन हो रहे हैं। इन स्थितियों ने वहां रहने वाले हिन्दुओं में बेचैनी और पलायन की प्रवृत्ति को बढ़ा दिया है।
थार एक्सप्रेस बंद होने का असर
2006 से 2018 के बीच चलने वाली थार एक्सप्रेस ने दोनों ओर के परिवारों को जोड़े रखा था, लेकिन पुलवामा हमले के बाद ट्रेन बंद होने से रिश्तों में दूरी बढ़ी है। इस ट्रेन से लाखों लोग भारत आए और कई वापस पाकिस्तान नहीं लौटे। अस्थायी वीजा पर आए कई लोगों ने बाद में भारत की नागरिकता ले ली।
1971 का इतिहास फिर चर्चा में
राजनाथ सिंह के बयान के बाद 1971 के युद्ध की यादें भी ताजा हो गईं, जब भारतीय सेना ने बाड़मेर से आगे बढ़ते हुए छाछरो तक पहुंचकर तिरंगा फहरा दिया था। यह इलाका करीब नौ महीनों तक भारत के नियंत्रण में रहा था, जिसे बाद में शिमला समझौते के तहत पाकिस्तान को लौटा दिया गया था। यही ऐतिहासिक संदर्भ आज फिर चर्चा का विषय बन गया है।
13 दिसंबर का कार्यक्रम भी महत्वपूर्ण
सूत्रों के अनुसार 13 दिसंबर को बाखासर में ब्रिगेडियर भवानीसिंह के साथी बलवंतसिंह बाखासर की प्रतिमा का अनावरण होना है। कार्यक्रम में रक्षामंत्री राजनाथ सिंह और राजस्थान की उपमुख्यमंत्री दीयाकुमारी के शामिल होने की संभावना है। भवानीसिंह 1971 में सिंध में भारतीय सेना की प्रगति के प्रमुख सेनानायक रहे थे।
राजनाथ सिंह के बयान ने न केवल सीमांत इलाकों की भावनाओं को जगाया है, बल्कि सिंध से जुड़े इतिहास और आज की वास्तविकताओं पर भी नए सिरे से बहस छेड़ दी है।
