भारत के न्यायिक इतिहास में एक नया अध्याय जुड़ गया है। जस्टिस सूर्यकांत ने सोमवार को देश के 53वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ ग्रहण की। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने उन्हें राष्ट्रपति भवन में आयोजित एक औपचारिक समारोह में पद एवं गोपनीयता की शपथ दिलाई। उनके कार्यभार संभालने के साथ ही पूर्व मुख्य न्यायाधीश जस्टिस बीआर गवई का कार्यकाल समाप्त हो गया। जस्टिस सूर्यकांत लगभग पंद्रह महीनों तक देश की सर्वोच्च न्यायिक संस्था का नेतृत्व करेंगे।
समारोह में कई उच्च पदस्थ हस्तियों की मौजूदगी
शपथ ग्रहण कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला, भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा सहित कई प्रमुख गणमान्य उपस्थित रहे। इस अवसर ने न्यायपालिका और कार्यपालिका के साझा संवैधानिक दायित्व को एक बार फिर रेखांकित किया।
कैसे बने अगले चीफ जस्टिस
संविधान के अनुच्छेद 124(2) के तहत, राष्ट्रपति मुर्मू ने तत्कालीन CJI गवई की अनुशंसा पर जस्टिस सूर्यकांत को सर्वोच्च न्यायालय का अगला मुखिया नियुक्त किया। वरिष्ठता क्रम को ध्यान में रखते हुए यह नियुक्ति स्वीकृत की गई, जो परंपरागत प्रक्रिया के अनुरूप है।
हरियाणा से उठकर सर्वोच्च न्यायालय तक का सफर
जस्टिस सूर्यकांत का जन्म 10 फरवरी 1962 को हरियाणा में एक साधारण मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ। 1984 में हिसार से अपने विधि करियर की शुरुआत करने के बाद वे चंडीगढ़ पहुंचे, जहां उन्होंने पंजाब-हरियाणा हाई कोर्ट में संवैधानिक, सेवा और सिविल मामलों में व्यापक अनुभव हासिल किया। इस दौरान उन्होंने विश्वविद्यालयों, बोर्डों, निगमों, बैंकों और स्वयं हाई कोर्ट की ओर से भी कई महत्वपूर्ण मुकदमे लड़े।
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शुरुआती सफलताएं और न्यायिक पदों पर उन्नति
2000 में उन्हें हरियाणा का सबसे कम उम्र का एडवोकेट जनरल नियुक्त किया गया। अगले ही वर्ष उन्हें वरिष्ठ अधिवक्ता का दर्जा मिला। 9 जनवरी 2004 को वे पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट के स्थायी जज बनकर न्यायपालिका में कदम बढ़ाते गए। बाद में अक्टूबर 2018 से मई 2019 तक वे हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रहे, जिसके बाद उनका कार्यकाल सर्वोच्च न्यायालय में शुरू हुआ। नवंबर 2024 से वे सुप्रीम कोर्ट लीगल सर्विसेज कमेटी के चेयरमैन के रूप में भी महत्वपूर्ण जिम्मेदारी निभा रहे थे।
नया कार्यकाल और न्यायपालिका से अपेक्षाएँ
सीजेआई के रूप में जस्टिस सूर्यकांत से न्यायिक सुधार, लंबित मामलों में तेजी, तकनीकी नवाचार और न्याय तक समान पहुंच को सुदृढ़ करने की दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने की उम्मीद है। उनकी पृष्ठभूमि और अनुभव आने वाले समय में भारतीय न्याय व्यवस्था को नई दिशा दे सकते हैं।
