राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने अपने पूर्वोत्तर दौरे के दौरान मणिपुर में हिंदू सभ्यता को लेकर एक व्यापक टिप्पणी की, जिसमें उन्होंने भारत की सांस्कृतिक निरंतरता की विशेषता को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि भारतीय सभ्यता ने समय के उतार-चढ़ाव को जिस स्थिरता के साथ झेला है, वह इसे दुनिया की विशिष्ट और जीवंत संस्कृतियों में शामिल करती है।
भागवत ने कहा कि इतिहास में कई महान सभ्यताएं परिस्थितियों के दबाव में ढह गईं, लेकिन भारत की जड़ें इतनी मजबूत रही हैं कि इसे मिटाने की हर कोशिश विफल रही। उनके अनुसार, हिंदू समाज ने जिस मूल ढांचे और मूल्य प्रणाली को खड़ा किया, उसी ने भारत के सांस्कृतिक अस्तित्व की रक्षा की।
“हिंदू नहीं रहेगा तो दुनिया नहीं रहेगी”
अपने भाषण में भागवत ने कहा कि दुनिया को आध्यात्मिक और नैतिक दिशा देने का काम हमेशा से भारत ने किया है। उनके अनुसार, हिंदू समाज का अस्तित्व केवल एक धार्मिक पहचान नहीं, बल्कि एक ऐसी सांस्कृतिक सोच है, जो मानवता को संतुलन और शांति की राह दिखाती है।
भागवत ने ब्रिटिश साम्राज्य का उदाहरण देते हुए कहा कि कभी जिसे अजेय साम्राज्य माना जाता था, उसका पतन भारत में ही शुरू हुआ। उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन का उल्लेख करते हुए कहा कि 1857 से लेकर 1947 तक भारतीय समाज निरंतर संघर्ष करता रहा और कई उतार-चढ़ाव के बावजूद स्वतंत्रता की मांग कभी दब नहीं पाई।
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उन्होंने कहा कि जब समाज किसी चुनौती को समाप्त करने का निश्चय कर ले, तो समाधान संभव है। नक्सलवाद का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि समाजिक सहमति के बाद इसकी पकड़ कमजोर हुई और इसके प्रभाव का अंत दिखाई देने लगा।
मणिपुर में जनजातीय नेताओं से मुलाकात
इंफाल में भागवत ने विभिन्न जनजातीय नेताओं के साथ बैठक की, जिसमें उन्होंने सामाजिक सौहार्द और एकता की आवश्यकता पर ज़ोर दिया। उन्होंने कहा कि संघ का उद्देश्य किसी भी वर्ग या समुदाय के खिलाफ खड़ा होना नहीं है, बल्कि समाज को समृद्ध और संगठित बनाना है।
उन्होंने स्पष्ट किया कि संघ का संचालन राजनीतिक तरीके से नहीं होता और न ही यह किसी संगठन को नियंत्रित करता है। उनका कहना था कि संघ की ताकत समाज के भीतर मैत्री, सहयोग और विश्वास पर आधारित है।
भागवत ने मणिपुर में चल रहे जातीय तनाव को लेकर चिंता जताई और कहा कि भारतीय सभ्यता से प्रेरणा लेकर समाज को आपसी समाधान के रास्ते तलाशने चाहिए।
हिंसा के बाद पहला दौरा
मणिपुर में पिछले वर्ष भड़की जातीय हिंसा के बाद यह मोहन भागवत की पहली यात्रा थी। उनकी मौजूदगी को देखते हुए राज्य में सुरक्षा व्यवस्था को मजबूत किया गया है। वर्तमान में मणिपुर राष्ट्रपति शासन के तहत है और समाजिक तनाव को कम करने के प्रयास जारी हैं।
