अधूरी योजना और ईंधन संकट के चलते गिरल थर्मल पावर प्लांट की बिक्री पर रोक
जयपुर। बाड़मेर स्थित गिरल थर्मल पावर प्लांट एक बार फिर विवादों में है। राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम (RRVUNL) ने 250 मेगावाट के इस बंद पड़े प्लांट को बेचने और इसके साथ 1100 मेगावाट का नया प्लांट स्थापित करने की योजना तैयार की थी। हालांकि, अब निगम ने यह प्रस्ताव स्वयं ही वापस लेने का निर्णय किया है।
ऊर्जा विभाग के सूत्रों के अनुसार, अधूरी तैयारी, ईंधन आपूर्ति की अस्पष्टता और वित्तीय प्रबंधन की कमी के कारण नियामक आयोग ने कई सवाल उठाए थे। इसके चलते निगम ने राजस्थान विद्युत विनियामक आयोग (RERC) से दायर याचिका वापस ले ली है।
14 नवंबर की जनसुनवाई से पहले याचिका वापस
गौरतलब है कि इस मामले में आयोग में 14 नवंबर को जनसुनवाई तय थी, लेकिन उससे पहले ही निगम ने याचिका वापस लेने का पत्र भेज दिया।
निगम के तकनीकी निदेशक संजय सनाढ्य ने बताया कि आयोग के कुछ ऑब्जर्वेशन और तकनीकी सुझावों को ध्यान में रखते हुए प्रस्ताव में संशोधन किया जा रहा है। “जैसे ही सुधार पूरे होंगे, याचिका दोबारा दाखिल की जाएगी,” उन्होंने कहा।
2016 से बंद, बढ़ता घाटा बना सिरदर्द
गिरल प्लांट वर्ष 2016 से बंद पड़ा है, लेकिन इसके रखरखाव और फिक्स्ड चार्जेज पर खर्च जारी है।
अब तक इस परियोजना पर करीब 2000 करोड़ रुपये का संचयी घाटा दर्ज हो चुका है।
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उत्पादन निगम ने प्लांट की न्यूनतम बिक्री दर 580 करोड़ रुपये तय की थी, जबकि इसका निर्माण 1865 करोड़ रुपये की लागत से किया गया था। विशेषज्ञों का कहना है कि इतनी कम कीमत पर बिक्री से राज्य की संपत्ति का अवमूल्यन हो सकता है।
वर्षों तक कम उत्पादन, फिर भी खर्च बढ़ता गया
राजस्थान विद्युत विनियामक आयोग के मानदंडों के अनुसार, यदि किसी पावर यूनिट की उत्पादन क्षमता 75 प्रतिशत से कम रहती है, तो उसे घाटे में माना जाता है।
गिरल पावर प्लांट में वर्ष 2009 से 2016 के बीच केवल 15 से 30 प्रतिशत बिजली उत्पादन ही हुआ।
इसके बावजूद रखरखाव और वेतन जैसी लागतें बढ़ती रहीं, जिससे घाटा लगातार बढ़ा।
ईंधन आपूर्ति पर अस्पष्टता बनी बड़ी बाधा
नए प्रस्ताव के अनुसार, जलिपा और कपूरड़ी लिग्नाइट खदानों से ईंधन आपूर्ति की योजना थी।
लेकिन ये दोनों खदानें पहले से ही निजी कंपनियों को आवंटित हैं।
निगम की याचिका में यह स्पष्ट नहीं किया गया कि इन खदानों से ईंधन कैसे लिया जाएगा या इसका वैकल्पिक स्रोत क्या होगा।
इसी अस्पष्टता को आयोग ने “मुख्य खामी” मानते हुए प्रस्ताव पर सवाल उठाए।
केंद्र की रिपोर्ट से घटाई गई अतिरिक्त बिजली मांग
केन्द्रीय विद्युत प्राधिकरण (CEA) की ताजा रिसोर्स एडिक्वेसी रिपोर्ट के अनुसार, राजस्थान की बिजली की जरूरतें 2031-32 तक मौजूदा प्रोजेक्ट्स से पूरी हो जाएंगी।
रिपोर्ट में राज्य की अतिरिक्त बिजली मांग घटाकर केवल 1600 मेगावाट बताई गई है।
ऐसे में विशेषज्ञों का कहना है कि नए 1100 मेगावाट प्लांट की जरूरत पर भी सवाल उठना स्वाभाविक है।
विशेषज्ञों ने उठाए सवाल, कहा – “योजना बिना ठोस आधार के”
ऊर्जा क्षेत्र के जानकारों ने कहा कि निगम की योजना व्यावहारिकता के अभाव में जल्दबाज़ी में तैयार की गई थी।
बिना स्पष्ट ईंधन स्रोत, वित्तीय मॉडल और पर्यावरणीय अनुमति के यह प्रोजेक्ट आयोग की मंजूरी हासिल नहीं कर सकता था।
अब निगम ने इसे वापस लेकर प्रस्ताव को पुनः संरचित करने का निर्णय लिया है।
