राजस्थान में गाँव-स्तर की राजनीति उन हजारों उम्मीदवारों के लिए जोखिम भरी स्थिति में आ गई है, जिन्होंने आगामी पंचायत चुनावों के लिए पूरी तैयारी कर रखी थी। हालांकि, इस समय चुनाव कार्यक्रम अनिश्चितता के चलते स्थगित हो चुका है, जिससे प्रत्याशी और उनके समर्थक दोनों निराश दिखाई दे रहे हैं।
राज्य में कई ग्राम-पंचायतों का कार्यकाल अक्टूबर-नवंबर में समाप्त हो चुका था, लेकिन Rajasthan State Election Commission (एसईसी) ने अब तक नई तारीख घोषित नहीं की है। इस कारण से गाँव-कस्बों में चुनावी गतिविधियाँ—जैसे समर्थन जुटाना, दस्तक-देना, सामाजिक बैठकों में समीकरण बिठाना—सब धीमी गति से चल रही हैं।
उम्मीदवारों का कहना है कि उन्होंने वर्ष भर की तरह मतदाता घर-घर जाने से लेकर रस्मी तैयारियों तक में समय निवेश किया था, लेकिन अब चुनाव स्थगित होने से उनकी मेहनत अधूरी रह गई है। इनमें से कई गाँवों में आधिकारिक अधिसूचना निकलते-निकलते रह गई है, लेकिन अब तक तारीख तय न होने से अनिश्चितता बनी हुई है।
राजस्थान सरकार ने वर्ष 2025 में लगभग 6,759 ग्राम पंचायतों में चुनाव स्थगित करने की अधिसूचना दी थी, जिसे हाई-कोर्ट ने संवैधानिक देरी बताया है। वहीं, मतदाता सूची अद्यतनीकरण (डिलिमिटेशन) और अन्य प्रक्रिया को वजह बताते हुए चुनाव आगे खिसक गए हैं।
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दावेदारों के सामने चुनौतियाँ
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चुनाव की तारीख न तय होने के कारण अब पुनः तैयारी करनी होगी — अब तक किया गया खर्च व्यर्थ हो सकता है।
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पुराने समीकरणों को दोबारा बैठाना होगा, क्योंकि समय के साथ वोट बैंक में बदलाव आता है।
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समर्थकों में उत्साह की कमी देखी जा रही है, जिससे प्रत्याशियों को सामाजिक-राजनीतिक गतिविधियों में प्रभाव कम लगने लगा है।
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कार्यकाल समाप्त पंचायतें प्रशासक समितियों द्वारा चल रही हैं, जिससे निर्वाचित पदों की गरिमा पर असर पड़ने का डर है।
प्रभाव और आगे क्या होगा
स्थिर पंचायत प्रशासन के लिए चुनाव अनिवार्य माना जाता है—संविधान के अंतर्गत निर्वाचित प्रतिनिधियों द्वारा प्रतिनिधिमूलक शासन की व्यवस्था होती है। लेकिन इस देरी से लोकतांत्रिक संचालना प्रभावित हो सकती है। हाई-कोर्ट ने इस स्थिति पर राज्य सरकार को सख्त निर्देश दिए हैं कि चुनाव शीघ्र कराए जाएँ।
यदि अब आगामी दौर की तारीख घोषित होती है, तो तैयारियों को फिर से रिबूट करना होगा। वहीं, ग्रामीण राजनीति में इस लंबे अंतराल का असर लंबे समय तक महसूस हो सकता है—उम्मीदवारी से लेकर चुनावी खर्च, रणनीति और समर्थन-सपोर्ट नेटवर्क तक।
