बेंगलुरु में 400 से अधिक बांग्लादेशी नागरिकों को बसाने के आरोप पर कोर्ट ने दिखाई सख्ती
बेंगलुरु की एक अदालत ने अलाउद्दीन नामक व्यक्ति की अग्रिम जमानत याचिका खारिज कर दी है। आरोपी पर आरोप है कि उसने करीब 400 बांग्लादेशी घुसपैठियों को अवैध रूप से शहर में बसाने में मदद की। अदालत ने कहा कि ऐसे अपराध न केवल कानून का उल्लंघन हैं, बल्कि राज्य की सुरक्षा और संप्रभुता के लिए गंभीर खतरा पैदा करते हैं।
अदालत का तर्क – अग्रिम जमानत से कानून की साख पर असर
69वें अतिरिक्त सिटी सिविल एवं सत्र न्यायालय की न्यायाधीश शिरीन जावेद अंसारी ने अपने आदेश में कहा कि आरोपी पर लगे आरोप बेहद गंभीर हैं।
अदालत के अनुसार, यदि अग्रिम जमानत दी जाती है, तो इससे जांच प्रभावित हो सकती है और कानून की साख कमजोर पड़ सकती है।
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि Foreigners Act Section 14 के तहत यह अपराध गैर-जमानती है और इसमें अग्रिम जमानत देना न्याय के सिद्धांतों के विपरीत होगा।
दो देशों के पहचान पत्रों ने बढ़ाई मुश्किलें
सरकारी पक्ष के वकील ने बताया कि आरोपी के पास India aur Bangladesh dono ke ID cards हैं।
भारत में वह “Alauddin Bin Abdul Latif” के नाम से आधार कार्ड रखता है, जबकि बांग्लादेश के पहचान पत्र में उसका नाम “Alauddin Haoladhar” दर्ज है। दोनों दस्तावेज़ों में जन्मतिथि और विवरण अलग-अलग हैं।
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अभियोजन पक्ष के अनुसार, आरोपी ने IMO aur other international communication apps का इस्तेमाल करते हुए बांग्लादेश से लोगों को भारत में प्रवेश कराने में सहायता की और शहर के विभिन्न हिस्सों में उन्हें बसाया।
आरोपी का दावा – “Main Indian citizen hoon, false case banaya gaya hai”
अलाउद्दीन ने अदालत में कहा कि वह West Bengal ka asli nivasi है और कई वर्षों से बेंगलुरु में राजमिस्त्री का काम करता है। उसने कहा कि सरकार ने उस पर झूठे आरोप लगाए हैं और उसका किसी अवैध प्रवासी नेटवर्क से कोई संबंध नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का हवाला
न्यायाधीश ने अपने आदेश में Supreme Court के उन निर्णयों का उल्लेख किया जिनमें कहा गया है कि
national security, illegal immigration, aur border infiltration से जुड़े मामलों में अदालतों को अग्रिम जमानत देने में अत्यधिक संयम बरतना चाहिए।
