बीकानेर: राजस्थान एक बार फिर नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में देश ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के लिए एक नई मिसाल बनने जा रहा है। बीकानेर जिले के पूगल क्षेत्र में विकसित किया जा रहा पूगल सोलर पार्क (Poogal Solar Park) जल्द ही दुनिया का सबसे बड़ा सोलर एनर्जी प्लांट बनने जा रहा है। इस परियोजना की सबसे खास बात यह है कि इसमें पहली बार 5,000 मेगावाट क्षमता वाला बैटरी एनर्जी स्टोरेज सिस्टम (BESS) भी जोड़ा जा रहा है, जिससे यह प्रोजेक्ट वैश्विक स्तर पर एक अद्वितीय ऊर्जा मॉडल साबित होगा।
देश का पहला सोलर-बैटरी संयोजन पार्क
पूगल सोलर पार्क देश का पहला ऐसा सोलर प्रोजेक्ट होगा, जिसमें बड़े पैमाने पर सौर ऊर्जा उत्पादन और बैटरी स्टोरेज सिस्टम को एक साथ जोड़ा जा रहा है। इससे अतिरिक्त ऊर्जा को संग्रहित किया जा सकेगा और गैर-धूप वाले समय में भी बिजली की सप्लाई बनी रहेगी।
इंडिया एनर्जी स्टोरेज एलायंस (IESA) के अध्यक्ष देबमल्य सेन ने कहा, “यह प्रोजेक्ट भारत की ऊर्जा स्वतंत्रता की दिशा में मील का पत्थर साबित होगा और आने वाले वर्षों में यह वैश्विक स्तर पर भारत की पहचान को नई ऊंचाई देगा।”
राजस्थान बनेगा आत्मनिर्भर ऊर्जा राज्य
यह महत्वाकांक्षी परियोजना राजस्थान सोलर पार्क डेवलपमेंट कंपनी लिमिटेड (RSDCL) द्वारा विकसित की जा रही है, जो राजस्थान नवीकरणीय ऊर्जा निगम लिमिटेड (RRECL) की सहायक कंपनी है।
ऊर्जा विभाग के प्रमुख सचिव अजिताभ शर्मा के अनुसार, “पूगल सोलर पार्क से उत्पन्न बिजली मुख्य रूप से राज्य के घरेलू उपभोग के लिए उपयोग की जाएगी। इससे राजस्थान पूरी तरह से आत्मनिर्भर ऊर्जा राज्य बनने की दिशा में एक कदम और आगे बढ़ेगा।”
4,780 हेक्टेयर भूमि पर फैला होगा पार्क
करीब 4,780 हेक्टेयर सरकारी भूमि पर विकसित किया जा रहा यह पार्क ‘प्लग एंड प्ले मॉडल’ पर आधारित है। इसमें सड़कों, ड्रेनेज सिस्टम, बाउंड्री फेंसिंग और पावर इंफ्रास्ट्रक्चर जैसी सभी सुविधाएं पहले से तैयार की जा रही हैं, ताकि निवेशक तुरंत काम शुरू कर सकें।
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ग्रिड से सीधे जुड़ेगा सोलर पार्क
राजस्थान राज्य विद्युत प्रसारण निगम (RVPN) और RSDCL मिलकर 765/400 केवी ग्रिड सबस्टेशन और ट्रांसमिशन लाइनें तैयार कर रहे हैं। इससे पूगल सोलर पार्क से उत्पन्न बिजली को राष्ट्रीय ग्रिड से जोड़ा जाएगा और राज्य के हर हिस्से तक स्वच्छ ऊर्जा पहुंच सकेगी।
रोजगार और पर्यावरण दोनों को लाभ
इस परियोजना से 1,000 से अधिक प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोजगार के अवसर पैदा होंगे। साथ ही, हर साल करीब 2 लाख टन कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन में कमी आएगी। यह प्रोजेक्ट भारत को ग्रीन एनर्जी लक्ष्य हासिल करने में अहम भूमिका निभाएगा।
