नई दिल्ली। ग़ज़ा में दो साल से जारी संघर्ष ने न केवल मध्य पूर्व की राजनीति को बदल दिया है, बल्कि वैश्विक शक्ति संतुलन पर भी गहरा प्रभाव डाला है। इस युद्ध का दायरा अब ग़ज़ा से निकलकर लेबनान, सीरिया, ईरान और यमन तक फैल चुका है। विशेषज्ञों का मानना है कि इस युद्ध ने अमेरिका, रूस, चीन और तुर्की की विदेश नीतियों में भी बड़ा बदलाव लाया है।
युद्ध की शुरुआत और विस्तार
7 अक्टूबर 2023 को हमास ने इसराइल पर भीषण हमला किया था, जिसमें 1,200 से अधिक लोग मारे गए और 250 से ज्यादा को बंधक बना लिया गया। इसके जवाब में इसराइल ने ग़ज़ा पर अब तक का सबसे बड़ा सैन्य अभियान शुरू किया। हमास के नियंत्रण वाले स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार, दो वर्षों में 68,000 से अधिक फ़लस्तीनियों की मौत हुई है। संयुक्त राष्ट्र ने इन आंकड़ों की पुष्टि की है।
राजनीतिक विशेषज्ञ डॉ. जूली नॉर्मन के अनुसार, “ग़ज़ा में हुई तबाही ने पूरे क्षेत्र के भविष्य को बदल दिया है। यह संघर्ष अब केवल दो पक्षों का नहीं रहा, बल्कि इससे पूरा मध्य पूर्व हिल गया है।”
युद्ध का डोमिनो असर
हमास के हमले के बाद इसराइल पर लेबनान के हिज़्बुल्लाह, सीरिया के विद्रोही गुटों और यमन के हूती संगठन ने भी हमले शुरू कर दिए। ये सभी ईरान समर्थित “एक्सिस ऑफ रेज़िस्टेंस” का हिस्सा हैं।
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सितंबर 2024 में इसराइल ने लेबनान में हिज़्बुल्लाह के ठिकानों को निशाना बनाया, जिससे संगठन को भारी नुकसान हुआ और उसके नेता हसन नसरल्लाह मारे गए। दो महीने बाद सीरिया में बशर-अल-असद की सरकार का पतन हो गया।
डॉ. नॉर्मन बताती हैं कि “हिज़्बुल्लाह और ईरान की कमज़ोरी के कारण सीरिया में सत्ता परिवर्तन तेज़ी से हुआ।” इसके बाद सीरिया के नए राष्ट्रपति अहमद अल-शरा ने इसराइल के साथ शांति की घोषणा की और किसी भी विदेशी हमले के लिए अपनी ज़मीन का इस्तेमाल न होने देने का वादा किया।
इसराइल–ईरान युद्ध और वैश्विक हस्तक्षेप
जून 2025 में इसराइल ने ईरान के परमाणु ठिकानों पर हमला किया, जिससे 12 दिन का युद्ध छिड़ गया। अमेरिका ने इसराइल का साथ देते हुए “बंकर बस्टर” बम गिराए। अंततः क़तर की मध्यस्थता से युद्धविराम हुआ।
अमेरिकी राजनयिक एलियट अब्राम्स का कहना है, “हमास और हिज़्बुल्लाह के कमजोर होने से ईरान का प्रॉक्सी सिस्टम लगभग खत्म हो गया है। यह इसराइल की सुरक्षा नीति में एक ऐतिहासिक परिवर्तन है।”
बदलता शक्ति संतुलन
इस युद्ध ने न केवल ईरान और सीरिया की ताकत कम की है, बल्कि रूस और चीन की भूमिका भी सीमित कर दी है। रूस ने बशर-अल-असद के पतन के साथ एक बड़ा सहयोगी खो दिया, जबकि चीन ने मध्य पूर्व में शांति मध्यस्थता से पीछे हटने का फैसला किया।
अब तुर्की इस क्षेत्र में नई शक्ति के रूप में उभर रहा है। वह सीरिया की नई सरकार का प्रमुख सहयोगी बन गया है और अपने प्रभाव को बढ़ाने की दिशा में आगे बढ़ रहा है।
क़तर बना मध्यस्थ, इसराइल हुआ अलग-थलग
सितंबर 2025 में इसराइल ने दोहा में हमास नेताओं पर हमला किया, जिससे क़तर नाराज़ हो गया और युद्धविराम खतरे में पड़ गया। इसके बाद अमेरिका के दबाव में इसराइल को क़तर से माफ़ी मांगनी पड़ी। विशेषज्ञों के अनुसार, यह घटना युद्ध के अंत की दिशा में एक निर्णायक मोड़ साबित हुई।
यूरोप और अमेरिका में भी इसराइल की आलोचना बढ़ी। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट ने इसराइल पर ग़ज़ा में जनसंहार के आरोप लगाए। इसके बाद कई देशों ने फ़लस्तीन को मान्यता देने का निर्णय लिया।
डॉ. सनम वकील के अनुसार, “इसराइल आज भले ही सैन्य रूप से मज़बूत दिखे, लेकिन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहले से कहीं अधिक अलग-थलग हो चुका है।”

