एसएमएस अस्पताल हादसे ने खोली देशभर के अस्पतालों की पोल, फायर सेफ्टी में भारी लापरवाही
जयपुर के प्रतिष्ठित सवाई मानसिंह अस्पताल (एसएमएस) के ट्रॉमा सेंटर में रविवार रात लगी आग की घटना ने देशभर के अस्पतालों की फायर सेफ्टी व्यवस्थाओं की सच्चाई सामने ला दी है।
घटना के तुरंत बाद पत्रिका की पड़ताल टीम ने विभिन्न राज्यों के प्रमुख सरकारी अस्पतालों की फायर सेफ्टी और इमरजेंसी प्रबंधन की स्थिति का आकलन किया, जहां लगभग हर जगह सुरक्षा मानकों की अनदेखी और लापरवाही का भयावह चेहरा सामने आया।
राजस्थान: जिलों में फायर सिस्टम केवल दिखावा
एसएमएस हादसे के बाद राजस्थान के जोधपुर, कोटा, अजमेर, उदयपुर, अलवर, श्रीगंगानगर, बाड़मेर, भीलवाड़ा, पाली, सीकर, बूंदी, चित्तौड़गढ़ और झालावाड़ जैसे जिलों में मौजूद बड़े अस्पतालों की स्थिति भी चिंता बढ़ाने वाली है।
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कई अस्पतालों में फायर फाइटिंग सिस्टम या तो पूरी तरह खराब हैं या सिर्फ दिखावे के लिए लगाए गए हैं।
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फायर एनओसी (No Objection Certificate) तक न होने की स्थिति कई जगहों पर देखी गई।
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इमरजेंसी एग्जिट, स्मोक अलार्म, अग्निशामक यंत्रों की समय पर सर्विसिंग और रिफिलिंग नहीं की जाती।
मध्यप्रदेश: अग्निशमन यंत्र बेकार, कोई नियमित जांच नहीं
मध्यप्रदेश के भोपाल शहर में स्थित प्रमुख सरकारी अस्पताल जैसे हमीदिया अस्पताल, जेपी अस्पताल और कमला नेहरू अस्पताल में
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फायर सेफ्टी व्यवस्था अधूरी और असंगठित है।
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अग्निशमन यंत्रों की समय पर रिफिलिंग नहीं होती, जिससे आपात स्थिति में उनका उपयोग असंभव हो जाता है।
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कई अस्पतालों में तो फायर ऑडिट रिपोर्ट और सुरक्षा मापदंडों की निरीक्षण सूची तक उपलब्ध नहीं है।
छत्तीसगढ़: ट्रॉमा सेंटर में आग लग चुकी, फिर भी लापरवाही बरकरार
रायपुर के डॉ. भीमराव आंबेडकर मेमोरियल अस्पताल में पिछले वर्ष ट्रॉमा सेंटर में आग लगने की घटना के बावजूद
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फायर सिस्टम को केवल आंशिक रूप से सुधारा गया, लेकिन जमीनी स्तर पर कोई ठोस सुधार नहीं हुआ।
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ICU, NICU और PICU जैसे संवेदनशील विभागों में एमरजेंसी एग्जिट डोर तक मौजूद नहीं हैं।
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कई निजी अस्पतालों में तो फायर ऑडिट तक नहीं कराया गया, जिससे नियमों के पालन की स्थिति शून्य है।
विशेषज्ञों की राय: आग लगने के बाद ही जागती है व्यवस्था
स्वास्थ्य और सुरक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि
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देश के ज्यादातर सरकारी अस्पतालों में सुरक्षा को प्राथमिकता नहीं दी जाती।
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फायर फाइटिंग सिस्टम केवल कागजों पर चलते हैं, और प्रशासन तब ही सक्रिय होता है जब कोई हादसा घटित होता है।
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जरूरत है कि सभी अस्पतालों का समय-समय पर फायर ऑडिट कराया जाए और जिम्मेदार अधिकारियों की सार्वजनिक जवाबदेही तय की जाए।