सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली-एनसीआर में पटाखों पर प्रतिबंध को लेकर जताई सख्ती, केंद्र सरकार को नीति पर पुनर्विचार का निर्देश
नई दिल्ली:
दीपावली से पहले पटाखों पर प्रतिबंध को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और दिल्ली सरकार की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल उठाए हैं। शुक्रवार को हुई सुनवाई में शीर्ष अदालत ने कहा कि दिल्ली-एनसीआर में पटाखों पर लगाया गया पूर्ण प्रतिबंध प्रभावी तरीके से लागू नहीं हो पा रहा है, जो बेहद चिंताजनक है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि “ग्रीन पटाखों” के निर्माण की सीमित अनुमति केवल उन्हीं निर्माताओं को दी जाएगी जिनके पास NEERI और PESO से वैध अनुमति-पत्र हैं।
NCR में पटाखों की बिक्री पर रोक, केवल वैध निर्माण की अनुमति
मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पीठ ने यह भी कहा कि जब तक अदालत अगला आदेश नहीं देती, तब तक एनसीआर क्षेत्र में किसी भी प्रकार के पटाखों की बिक्री नहीं की जानी चाहिए। हालांकि, अदालत ने यह भी माना कि ग्रीन पटाखों का सीमित निर्माण उन शर्तों के अधीन किया जा सकता है जो पर्यावरण की सुरक्षा को प्राथमिकता दें। अगली सुनवाई 8 अक्टूबर 2025 को तय की गई है।
कोर्ट ने उठाया बड़ा सवाल – सिर्फ दिल्ली-एनसीआर में ही क्यों प्रतिबंध?
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी सवाल किया कि अगर पटाखों से प्रदूषण होता है, तो प्रतिबंध केवल दिल्ली-एनसीआर तक ही सीमित क्यों है? अदालत ने कहा कि पूरे देश में इस पर एक समान नीति होनी चाहिए। 3 अप्रैल 2025 के अपने आदेश की पुनः पुष्टि करते हुए कोर्ट ने कहा था कि यह प्रतिबंध केवल सर्दियों तक सीमित नहीं, बल्कि पूरे साल प्रभावी रहना चाहिए।
पटाखा प्रतिबंध और बिहार का उदाहरण
कोर्ट ने बिहार में अवैध खनन का उदाहरण देते हुए कहा कि जब किसी गतिविधि पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया जाता है, तो उससे अवैध बाजार को बढ़ावा मिल सकता है। पटाखों के संदर्भ में भी यही खतरा है कि पूर्ण प्रतिबंध से गैरकानूनी बिक्री को बढ़ावा मिल सकता है। इसलिए एक संतुलित और व्यावहारिक नीति की जरूरत है।
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केंद्र और राज्य सरकारों को सुप्रीम कोर्ट के निर्देश
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार, दिल्ली सरकार, पटाखा निर्माताओं, विक्रेताओं और पर्यावरण विशेषज्ञों सहित सभी संबंधित पक्षों से व्यापक चर्चा करके एक नई नीति तैयार करने को कहा है। कोर्ट ने कहा कि ऐसा समाधान निकाला जाए जिसमें पर्यावरण की रक्षा भी हो और सामाजिक-आर्थिक हितों का भी ध्यान रखा जाए।
