बिहार में अडानी समूह को ज़मीन देने पर विवाद गहराया, सरकार ने बताया आरोप बेबुनियाद
पटना:
बिहार में अडानी समूह को 1,050 एकड़ भूमि उपहार में दिए जाने को लेकर राजनीतिक बवाल तेज हो गया है। जहां एक ओर कांग्रेस ने केंद्र सरकार और अडानी समूह के खिलाफ पटना में विरोध प्रदर्शन किया, वहीं दूसरी ओर बिहार सरकार और उद्योग मंत्री नीतीश मिश्रा ने इस मामले में स्पष्ट रूप से आरोपों का खंडन करते हुए तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर पेश करने का आरोप कांग्रेस पर लगाया है।
कांग्रेस का आरोप: अडानी को एक रुपये में ज़मीन दी गई
कांग्रेस पार्टी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अडानी समूह पर निशाना साधते हुए कहा कि भागलपुर में पावर प्लांट लगाने के नाम पर अडानी को मात्र एक रुपये प्रति एकड़ के हिसाब से 1,050 एकड़ ज़मीन गिफ्ट की गई है।
कांग्रेस के मीडिया विभाग प्रमुख पवन खेड़ा ने दिल्ली में प्रेस कांफ्रेंस कर यह आरोप लगाया कि चुनावी हार के डर से केंद्र सरकार राष्ट्रीय संसाधनों को निजी हाथों में सौंप रही है। इसके विरोध में पटना में कांग्रेस ने राज्यव्यापी विरोध प्रदर्शन किया।
बिहार कांग्रेस अध्यक्ष राजेश राम ने कहा, “यह सिर्फ ज़मीन का मामला नहीं है, बल्कि किसानों के हक़ पर सीधा हमला है। वोट चोरी का मतलब अब किसानों के अधिकारों की चोरी हो गया है।”
बिहार सरकार का खंडन: सबसे कम बोली पर मिला प्रोजेक्ट
बिहार सरकार ने इन आरोपों को नकारते हुए कहा है कि अडानी समूह को कोई ज़मीन मुफ्त में नहीं दी गई है।
उद्योग मंत्री नीतीश मिश्रा ने स्पष्ट किया कि यह प्रोजेक्ट एक ट्रांसपेरेंट टेंडर प्रक्रिया के तहत दिया गया है, जिसमें कुल चार कंपनियों ने भाग लिया।
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अडानी पावर लिमिटेड को यह प्रोजेक्ट इसलिए मिला क्योंकि उसने 6.075 रुपये प्रति यूनिट की सबसे कम दर पर बिजली आपूर्ति की पेशकश की। मिश्रा ने कहा कि भूमि आवंटन व अन्य शर्तें पूरी तरह सरकारी प्रक्रिया के अनुसार तय की गई हैं और कोई भी विशेष छूट या रियायत नहीं दी गई है।
अडानी समूह की सफाई: गलत जानकारी फैलाई जा रही है
अडानी ग्रुप ने भी 13 सितंबर को जारी एक प्रेस बयान में इन आरोपों को खारिज करते हुए कहा था कि कंपनी को यह प्रोजेक्ट प्रतिस्पर्धी बोली प्रक्रिया के बाद मिला है।
प्रेस रिलीज़ के अनुसार:
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कंपनी लगभग ₹26,000 करोड़ का निवेश करेगी
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2400 मेगावाट की क्षमता वाला यह पावर प्लांट
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अगले पांच वर्षों में संचालन में आएगा
कंपनी का कहना है कि यह प्रोजेक्ट बिहार को ऊर्जा आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम है और इसे बेवजह राजनीतिक रंग दिया जा रहा है।
निष्कर्ष:
बिहार में अडानी समूह को भूमि आवंटन को लेकर उठे विवाद ने राजनीतिक गलियारों में सरगर्मी बढ़ा दी है।
जहां कांग्रेस इस मुद्दे को किसानों और सार्वजनिक संसाधनों के निजीकरण से जोड़कर उठा रही है, वहीं बिहार सरकार और अडानी समूह इसे नीतिगत और पारदर्शी प्रक्रिया का हिस्सा बता रहे हैं।