विनोद बनाम रमेश कुमार: 6 साल पुराने चेक अनादरण मामले में न्यायालय का बड़ा फैसला
एक लंबे कानूनी संघर्ष के बाद विशिष्ट मजिस्ट्रेट एनआई कोर्ट संख्या-3, बीकानेर ने एक चेक बाउंस मामले में आरोपी को दोषी ठहराते हुए चार माह के कारावास और 1.65 लाख रुपये के अर्थदंड की सजा सुनाई है। यह फैसला उस समय आया जब न्यायालय ने दोनों पक्षों की दलीलों और साक्ष्यों का गहन परीक्षण किया।
क्या है पूरा मामला?
परिवादी विनोद पुत्र शंकरलाल, निवासी अनाथलय के पीछे, ने वर्ष दिसंबर 2017 में अपनी जान-पहचान के आधार पर रमेश कुमार बत्रा, निवासी मुक्ताप्रसाद कॉलोनी, को 1 लाख रुपये उधार दिए थे।
रमेश कुमार ने यह राशि दो माह में लौटाने का वादा किया था, लेकिन समय बीतने के बावजूद पैसे नहीं लौटाए। जब विनोद ने बार-बार भुगतान की मांग की, तो रमेश ने भारतीय स्टेट बैंक के अपने खाते का एक चेक विनोद को दे दिया और बैंक से राशि निकालने को कहा।
चेक बाउंस और अदालत की शरण
परिवादी ने जब चेक को बैंक में प्रस्तुत किया, तो चेक अनादरण हो गया। बैंक ने कारण बताया कि खाते में पर्याप्त धनराशि नहीं थी। इस पर जब विनोद ने दोबारा आरोपी से संपर्क किया, तो कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिला।
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अंततः परेशान होकर विनोद ने अक्टूबर 2018 में न्यायालय की शरण ली और मुकदमा दर्ज कराया। अभियुक्त रमेश कुमार करीब 4 वर्षों तक न्यायालय में पेश नहीं हुआ, और पहली बार अक्टूबर 2022 में अदालत में हाजिर हुआ।
लंबी सुनवाई और अंतिम निर्णय
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अक्टूबर 2022: आरोपी ने आरोपों से इनकार करते हुए मुकदमे की विधिवत जांच की मांग की।
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मई 2024: अभियुक्त ने परिवादी के साक्ष्यों को झूठा बताया और सफाई देने की कोशिश की।
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अगस्त 2024: न्यायालय ने आरोपी का साक्ष्य प्रस्तुत करने का अवसर बंद कर दिया।
इसके बाद न्यायालय ने दोनों पक्षों की अंतिम बहस सुनी।
न्यायालय का फैसला
विशिष्ट मजिस्ट्रेट (एनआई कोर्ट संख्या-3) पीठासीन अधिकारी ललित कुमार ने अपने आदेश में कहा कि मामला भारतीय नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट की धारा 138 के तहत आता है, और आरोपी पर लगे आरोप सिद्ध हुए हैं।
इस पर अदालत ने:
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4 माह का साधारण कारावास
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1,65,000 रुपये का जुर्माना, जिसमें
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1 लाख रुपये मूलधन के रूप में
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65 हजार रुपये अतिरिक्त मुआवजे के रूप में
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आरोपी को दंडित किया।
विनोद की ओर से की गई कानूनी पैरवी
परिवादी विनोद की ओर से अधिवक्ता भंवरलाल बिश्नोई ने इस केस में पूरी कानूनी पैरवी की और मजबूत साक्ष्य प्रस्तुत किए, जिससे न्यायालय को सही निर्णय तक पहुंचने में मदद मिली।