ओवैसी का तीखा सवाल: क्या राष्ट्रपति को प्रधानमंत्री को हटाने का अधिकार है?
नई दिल्ली।
ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के प्रमुख और हैदराबाद से सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने केंद्र सरकार द्वारा प्रस्तावित उस विधेयक को लेकर गहरी आपत्ति जताई है, जिसमें प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री और मंत्रियों को हटाने का प्रावधान शामिल किया गया है। उन्होंने इसे संविधान विरोधी करार देते हुए कहा कि यह विधेयक राज्यों की स्वायत्तता पर सीधा प्रहार है।
क्या राष्ट्रपति प्रधानमंत्री से इस्तीफा ले सकते हैं?
ओवैसी ने सवाल उठाया कि संविधान के अनुच्छेद 74 में स्पष्ट किया गया है कि राष्ट्रपति मंत्रिपरिषद की सलाह और सहायता से निर्देशित होंगे। ऐसे में यदि राष्ट्रपति को प्रधानमंत्री को पद से हटाने का अधिकार दिया जाता है, तो यह संविधान की मूल भावना के विपरीत होगा।
ओवैसी ने कहा:
“क्या यह संभव है कि राष्ट्रपति किसी निर्वाचित प्रधानमंत्री से इस्तीफा ले सकते हैं? क्या यह संसद के सर्वोच्चता और लोकतांत्रिक प्रक्रिया के खिलाफ नहीं है?”
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क्या कहता है प्रस्तावित विधेयक?
इस विधेयक में प्रावधान है कि अगर कोई प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री या मंत्री गंभीर आपराधिक आरोपों के तहत 30 दिनों से अधिक जेल में रहते हैं, तो उन्हें पद से हटाया जा सकता है।
ओवैसी ने इस पर गहरी आपत्ति जताते हुए कहा:
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यह प्रावधान राज्य सरकारों की स्थिरता को खतरे में डाल सकता है।
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केंद्र सरकार अगर केवल चार या पांच मंत्रियों को गिरफ्तार करवा दे, तो पूरी राज्य सरकार गिर सकती है।
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यह विधेयक निर्वाचित सरकारों की स्वायत्तता का हनन है।
‘यह लोकतंत्र नहीं, पुलिस राज की तैयारी’ – ओवैसी
संसद में इस विधेयक को संयुक्त संसदीय समिति के पास भेजा गया है। लेकिन ओवैसी का कहना है कि यह विधेयक लोकतंत्र को कमजोर करता है और इसे “चयनित गिरफ्तारी के जरिए सरकारें गिराने” के एक साधन के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।
उनका कहना था:
“इस तरह का कानून लोकतांत्रिक संस्थाओं के लिए मौत की घंटी है। आप जनता द्वारा चुनी हुई सरकारों को कमजोर करना चाहते हैं। यह संविधान में शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत के भी खिलाफ है।”
लोकतंत्र की स्वतंत्रता पर खतरा
ओवैसी ने आशंका जताई कि यदि यह कानून लागू हो गया, तो इससे एक ऐसा माहौल बनेगा जहां राजनीतिक विरोध को दबाने के लिए गिरफ्तारियों का उपयोग किया जा सकता है।
उन्होंने कहा कि:
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चुनाव जीतने वाली सरकारें भी अस्थिर हो जाएंगी।
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इससे देश में केंद्र द्वारा राज्यों पर बढ़ती दखलअंदाजी का रास्ता साफ होगा।