SC का बड़ा फैसला: दिव्यांगों पर आपत्तिजनक कंटेंट बना तो होगी सख्त कार्रवाई, सरकार को गाइडलाइन बनाने का आदेश
नई दिल्ली।
सोशल मीडिया पर तेजी से बढ़ते ट्रेंड और कॉमेडी के नाम पर सीमाएं लांघते कंटेंट पर अब सुप्रीम कोर्ट ने सख्त रुख अपना लिया है। स्टैंडअप कॉमेडियन समय रैना के एक मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया कि दिव्यांगजनों पर आपत्तिजनक या अपमानजनक टिप्पणी किसी भी रूप में बर्दाश्त नहीं की जाएगी।
सुप्रीम कोर्ट की अहम टिप्पणियां:
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दिव्यांगों का मजाक उड़ाने पर माफ़ी जरूरी:
कोर्ट ने समय रैना सहित अन्य सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर्स को अपने पॉडकास्ट और वीडियोज में सार्वजनिक रूप से माफी मांगने का आदेश दिया है। -
जुर्माना और कानूनी कार्रवाई:
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि ऐसे मामलों में आर्थिक दंड और दंडात्मक कार्रवाई की जाएगी, चाहे संबंधित व्यक्ति कितना ही बड़ा यूट्यूबर या इन्फ्लुएंसर क्यों न हो। -
सरकार को गाइडलाइन तैयार करने का निर्देश:
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा कि वह सोशल मीडिया पर महिलाओं, बच्चों, वरिष्ठ नागरिकों और दिव्यांगजनों पर आपत्तिजनक कंटेंट को रोकने के लिए विस्तृत और प्रभावी दिशा-निर्देश बनाए।- Advertisement -
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अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की सीमाएं तय:
कोर्ट ने कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अर्थ यह नहीं कि आप किसी की गरिमा और संवेदनशीलता को ठेस पहुंचाएं, विशेष रूप से तब, जब कंटेंट से व्यावसायिक लाभ लिया जा रहा हो।
समय रैना के खिलाफ क्या हैं आरोप?
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रीढ़ की बीमारी ‘स्पाइनल मस्क्युलर एट्रोफी’ से ग्रसित लोगों पर की गई असंवेदनशील टिप्पणी।
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नेत्रहीन और दृष्टिबाधित व्यक्तियों का उपहास उड़ाने वाले वीडियो बनाए गए।
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एक फाउंडेशन द्वारा शिकायत दाखिल की गई कि यह एक बढ़ती प्रवृत्ति बन रही है, जो दिव्यांगजनों के अधिकारों और गरिमा का उल्लंघन है।
इन्फ्लुएंसर्स को अब क्या करना होगा?
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सार्वजनिक रूप से माफी मांगनी होगी।
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हलफनामा दाखिल कर बताना होगा कि वे कैसे अपने प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल दिव्यांगजनों के अधिकारों के प्रचार और जागरूकता में करेंगे।
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कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि अगर दिए गए निर्देशों का पालन किया गया, तो उन्हें हर सुनवाई में व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने की आवश्यकता नहीं होगी।
सुप्रीम कोर्ट का रुख क्यों मायने रखता है?
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डिजिटल मीडिया की पहुंच और प्रभाव तेजी से बढ़ा है, लेकिन संवेदनशील मुद्दों पर जिम्मेदारी का स्तर बेहद निम्न रह गया है।
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कोर्ट की टिप्पणी एक नैतिक चेतावनी और विधिक बाध्यता दोनों है कि अब सोशल मीडिया कंटेंट निर्माता संवैधानिक मर्यादाओं के दायरे में रहकर काम करें।
निष्कर्ष:
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला भारत में डिजिटल कंटेंट की सीमाओं और ज़िम्मेदारियों को फिर से परिभाषित करता है। यह स्पष्ट संदेश है कि कमाई और पॉपुलैरिटी के चक्कर में किसी भी वर्ग विशेष – विशेष रूप से दिव्यांगजनों – की गरिमा से खिलवाड़ बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। आने वाले समय में, यह फैसला सोशल मीडिया गवर्नेंस के लिए एक नज़ीर बन सकता है।