एमजीएसयू में परीक्षा नियंत्रक बदले, डॉ. बिठ्ल दास बिस्सा को हटाया, एबीवीपी के विरोध के बाद फैसला
बीकानेर स्थित महाराजा गंगासिंह विश्वविद्यालय (एमजीएसयू) में प्रशासनिक फेरबदल के तहत डॉ. बिठ्ल दास बिस्सा को परीक्षा नियंत्रक पद से हटा दिया गया है। उनकी जगह अब प्रो. राजाराम चोयल को दोबारा यह जिम्मेदारी सौंपी गई है। इस संबंध में विश्वविद्यालय के कुलसचिव अरविंद बिश्नोई ने आदेश जारी किए हैं, जिसमें तत्काल प्रभाव से प्रभार सौंपने के निर्देश दिए गए हैं।
आधिकारिक आदेश में डॉ. बिस्सा को पद से हटाने का कारण उनका स्वयं का अनुरोध बताया गया है, लेकिन विश्वविद्यालय के भीतर और बाहर के सूत्रों का मानना है कि इस निर्णय के पीछे एबीवीपी संगठन का दबाव और विरोध प्रमुख कारण रहे।
क्यों हुआ विवाद?
अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) ने डॉ. बिस्सा की नियुक्ति को लेकर पहले ही विरोध जताया था।
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संगठन का आरोप था कि डॉ. बिस्सा ने हाल ही में एक राजनीतिक दल के मंच पर सक्रिय भूमिका निभाई, जिससे उनकी निष्पक्षता पर प्रश्नचिह्न खड़ा होता है।
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साथ ही, उन्हें “अतिरिक्त कुलसचिव” के नाम पर बिना स्वीकृत पद के शासकीय सुविधाओं का लाभ लेने का भी आरोप लगाया गया।
एबीवीपी महानगर मंत्री मेहुल शर्मा और विभाग संयोजक मोहित जाजड़ा ने विश्वविद्यालय प्रशासन को ज्ञापन सौंपते हुए मांग की थी कि बिस्सा को हटाया जाए। साथ ही आंदोलन की चेतावनी भी दी गई थी।
विश्वविद्यालय प्रशासन का कदम
तेज होते विरोध और छात्रों की नाराजगी को देखते हुए विश्वविद्यालय प्रशासन ने अब यह निर्णय लिया है। आदेश में डॉ. बिस्सा को तत्काल प्रभाव से प्रो. राजाराम चोयल को प्रभार सौंपने को कहा गया है, जो पूर्व में भी इस पद पर कार्य कर चुके हैं।
डॉ. बिस्सा ने क्या कहा?
लॉयन एक्सप्रेस से बातचीत में डॉ. बिठ्ल दास बिस्सा ने कहा कि:
“किसी को लगाना या हटाना विश्वविद्यालय प्रशासनिक प्रक्रिया है, जो समय-समय पर होती रहती है। मुझे जिम्मेदारी सौंपी गई थी और अब वापस ले ली गई है, इसमें कुछ गलत नहीं है। जहां तक एबीवीपी द्वारा लगाए गए आरोपों की बात है, तो संगठन सबूत प्रस्तुत करे।”
निष्पक्ष जांच की मांग
एबीवीपी ने एक बार फिर मांग की है कि डॉ. बिस्सा की नियुक्तियों और कार्यकाल से जुड़े विवादों की निष्पक्ष जांच की जाए, ताकि विश्वविद्यालय की साख और शैक्षणिक पारदर्शिता बनी रह सके।
निष्कर्ष
डॉ. बिठ्ल बिस्सा को हटाने के फैसले ने विश्वविद्यालय में नए प्रशासनिक समीकरण और छात्र संगठनों की भूमिका को उजागर किया है। जहां एक ओर विश्वविद्यालय इसे सामान्य प्रशासनिक बदलाव बता रहा है, वहीं दूसरी ओर एबीवीपी इसे विचारधारा आधारित हस्तक्षेप की सफलता मान रही है।
