दिल्ली के निजामुद्दीन इलाके में स्थित ऐतिहासिक हुमायूं के मकबरे के पास शुक्रवार शाम एक बड़ा हादसा हो गया। दरगाह शरीफ पट्टे शाह परिसर में एक कमरे की छत का हिस्सा गिरने से 11 लोग मलबे में दब गए। घटना शाम करीब 4:30 बजे की है, जब अचानक छत का एक हिस्सा गिरा और वहां मौजूद लोग दब गए।
तत्काल राहत और बचाव अभियान
घटना की सूचना मिलते ही दिल्ली फायर सर्विस की पांच गाड़ियां मौके पर पहुंचीं। साथ ही, दिल्ली पुलिस और राष्ट्रीय आपदा मोचन बल (NDRF) की टीमों ने त्वरित कार्रवाई करते हुए राहत और बचाव कार्य शुरू किया। मलबा हटाने और खोजबीन के लिए अत्याधुनिक उपकरणों का इस्तेमाल किया गया।
बचाव दल के अथक प्रयासों से सभी 11 लोगों को सुरक्षित बाहर निकाल लिया गया और तुरंत नजदीकी अस्पताल में भर्ती कराया गया। गनीमत रही कि इस हादसे में किसी की जान नहीं गई। सभी की हालत स्थिर बताई जा रही है।
पुरानी इमारतों की सुरक्षा पर फिर उठे सवाल
हालांकि किसी की मृत्यु नहीं हुई, लेकिन इस घटना ने एक बार फिर दिल्ली में स्थित ऐतिहासिक और पुरानी इमारतों की संरक्षा और रखरखाव को लेकर सवाल खड़े कर दिए हैं। हुमायूं का मकबरा एक विश्व धरोहर स्थल है और देश की प्रमुख ऐतिहासिक धरोहरों में शामिल है।
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हुमायूं का मकबरा: ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
हुमायूं का मकबरा मुगल स्थापत्य कला का एक प्रमुख उदाहरण है, जिसका निर्माण हुमायूं की विधवा हाजी बेगम ने 1569-70 में करवाया था। इसे फारसी वास्तुकार मीरक मिर्जा गियाथ ने डिजाइन किया था। यह मकबरा लाल बलुआ पत्थर और सफेद संगमरमर से बना है और ‘चारबाग शैली’ में निर्मित है—जो स्वर्ग की कल्पना को दर्शाने वाली मुगल स्थापत्य की विशेषता है।
इस इमारत को “ताजमहल का अग्रदूत” भी कहा जाता है, क्योंकि ताजमहल के निर्माण में भी कई वास्तुशिल्पीय विशेषताएं हुमायूं के मकबरे से ली गई थीं। यूनेस्को ने 1993 में इसे विश्व धरोहर स्थल घोषित किया था।
परिसर की अन्य संरचनाएं
हुमायूं के मकबरे के परिसर में कई अन्य मकबरे और ऐतिहासिक संरचनाएं भी मौजूद हैं, जिनमें ईसा खान का मकबरा और नाई का मकबरा प्रमुख हैं। यह स्थान न केवल एक ऐतिहासिक स्मारक है, बल्कि मुग़ल काल के कई शासकों और उनके परिजनों की समाधियों का स्थल भी है।
निष्कर्ष
हालिया हादसा भले ही जानलेवा नहीं रहा, लेकिन इसने एक बार फिर ध्यान आकर्षित किया है कि ऐतिहासिक धरोहरों की संरक्षा और नियमित निरीक्षण कितना जरूरी है। प्रशासन को चाहिए कि इन धरोहर स्थलों की संरचनात्मक सुरक्षा की समय-समय पर जांच कर उन्हें सुरक्षित रखने के लिए उचित कदम उठाए जाएं।