प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 15 अगस्त 2025 को 79वें स्वतंत्रता दिवस के मौके पर लाल किले से अपने संबोधन में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की 100 साल की यात्रा को “गौरवशाली” और “दुनिया का सबसे बड़ा NGO” बताया। उन्होंने कहा कि RSS ने व्यक्ति निर्माण और राष्ट्र निर्माण में अहम भूमिका निभाई है। इस बयान के बाद विपक्ष ने तीखी प्रतिक्रिया दी और इसे स्वतंत्रता संग्राम और संविधान की मूल भावना का अपमान करार दिया।
ओवैसी का तीखा बयान
AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि प्रधानमंत्री ने राष्ट्रीय मंच का दुरुपयोग किया। उन्होंने आरोप लगाया कि RSS और उसके सहयोगियों का स्वतंत्रता संग्राम में कोई योगदान नहीं था, और उन्होंने अंग्रेजों से ज्यादा महात्मा गांधी से नफरत की। ओवैसी ने यह भी कहा कि हिंदुत्व की विचारधारा संविधान के मूल्यों के खिलाफ है और RSS की तारीफ करने के लिए लाल किला उपयुक्त मंच नहीं था।
कांग्रेस और अन्य दलों की आलोचना
कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने मोदी के भाषण को “संवैधानिक धर्मनिरपेक्षता का उल्लंघन” बताते हुए कहा कि यह भाषण सिर्फ RSS को खुश करने का प्रयास था। उन्होंने प्रधानमंत्री पर पुराने नारों को दोहराने और ठोस उपलब्धियों के अभाव का भी आरोप लगाया।
कांग्रेस सांसद मणिकम टैगोर ने आरोप लगाया कि RSS ने भारत छोड़ो आंदोलन और सविनय अवज्ञा आंदोलन से दूरी बनाए रखी, और लंबे समय तक तिरंगा नहीं फहराया। उन्होंने कहा कि यह संगठन नफरत फैलाने की विरासत का प्रतीक है, न कि स्वतंत्रता संग्राम का।
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अन्य विपक्षी नेताओं की प्रतिक्रिया
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DK शिवकुमार (कांग्रेस): RSS का स्वतंत्रता संग्राम में कोई योगदान नहीं। कांग्रेस ने संविधान और लोकतंत्र को बचाया।
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अखिलेश यादव (SP): RSS की विचारधारा स्वतंत्रता संग्राम की भावना के विपरीत है। “मुंह से स्वदेशी, मन से विदेशी”।
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केसी वेणुगोपाल (कांग्रेस): हर स्वतंत्रता दिवस पर इतिहास को तोड़ने की कोशिश की जाती है।
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थोल थिरुमावलवन (VCK): RSS की तारीफ करना शहीदों की कुर्बानी का अपमान है।
निष्कर्ष
प्रधानमंत्री मोदी के भाषण में RSS की प्रशंसा ने स्वतंत्रता दिवस को राजनीतिक विवाद का केंद्र बना दिया है। विपक्ष ने इसे न केवल इतिहास के साथ छेड़छाड़ बताया, बल्कि संविधान की धर्मनिरपेक्ष भावना को ठेस पहुँचाने वाला कदम करार दिया है। उनका आरोप है कि प्रधानमंत्री राष्ट्रीय मंच का इस्तेमाल संगठन विशेष की छवि सुधारने के लिए कर रहे हैं, जबकि वास्तविक स्वतंत्रता सेनानियों के योगदान को दरकिनार किया जा रहा है।