

बीकानेर स्थित महाराजा गंगासिंह विश्वविद्यालय (एमजीएसयू) में दस्तावेज़ प्राप्त करना छात्रों के लिए परेशानी का बड़ा कारण बन गया है। संभाग की सबसे बड़ी यूनिवर्सिटी होने के कारण हजारों छात्र-छात्राएं इससे जुड़े हुए हैं, लेकिन जब बात माइग्रेशन, मार्कशीट या किसी भी अन्य डॉक्यूमेंट की आती है तो उन्हें लंबी प्रक्रिया, असहयोगी रवैये और अतिरिक्त शुल्क का सामना करना पड़ता है।
ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों में कठिनाई
एमजीएसयू ने माइग्रेशन डॉक्यूमेंट के लिए दो विकल्प दिए हैं—ऑनलाइन और ऑफलाइन। लेकिन दोनों ही तरीकों में छात्रों को परेशान होना पड़ रहा है। ऑफलाइन प्रक्रिया में 650 रुपये की अर्जेंट फीस और 100 रुपये ई-मित्र संचालक को देने होते हैं, यानि कुल 750 रुपये का खर्च। वहीं ऑनलाइन आवेदन में 250 रुपये की फीस तय है, लेकिन इसमें डाक से डॉक्यूमेंट आने में समय लग जाता है।
स्टाफ का व्यवहार और प्रक्रिया की जटिलता
छात्रों की सबसे बड़ी शिकायत यूनिवर्सिटी स्टाफ के रवैये को लेकर है। कई बार एक साइन के लिए छात्रों को घंटों तक इधर-उधर भटकना पड़ता है। विशेष रूप से दूर-दराज गांवों से आए छात्रों के लिए यह स्थिति और भी कठिन हो जाती है। अर्जेंट माइग्रेशन की मांग पर स्टाफ पूछताछ में समय बर्बाद करता है और सीमित परिस्थितियों में ही फाइल स्वीकार करता है, जबकि छात्रों ने निर्धारित फीस पहले ही चुका दी होती है।
रोक दिए गए परिणाम और अतिरिक्त शुल्क
एक और गंभीर शिकायत यह है कि यदि किसी छात्र का परीक्षा परिणाम यूनिवर्सिटी द्वारा रोक दिया जाता है तो उसे रिलीज करवाने के लिए मोटी फीस ली जाती है। जबकि यह यूनिवर्सिटी की प्रशासनिक खामी है। छात्र परीक्षा के लिए पूरी प्रक्रिया और फीस पहले ही पूरी कर चुका होता है। ऐसे में परिणाम रुकने पर दोबारा फीस मांगना अन्यायपूर्ण है।
- Advertisement -

छात्रों पर दोहरी मार
एमजीएसयू में दस्तावेज़ों से जुड़ी अव्यवस्थाएं छात्रों को न केवल मानसिक रूप से परेशान कर रही हैं, बल्कि आर्थिक रूप से भी बोझ बढ़ा रही हैं। छात्रों का कहना है कि यदि यूनिवर्सिटी व्यवस्थाओं को पारदर्शी और सहज बनाए, तो वह ऑनलाइन ही सभी सेवाएं समय पर प्राप्त कर सकते हैं और बार-बार यूनिवर्सिटी के चक्कर लगाने से बच सकते हैं।
अब आवश्यकता है कि यूनिवर्सिटी प्रशासन इन समस्याओं पर संज्ञान ले, स्टाफ को संवेदनशील और जवाबदेह बनाए और प्रक्रियाओं को छात्रहित में सरल बनाए।