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राजस्थान

RGHS योजना पर संकट, निजी अस्पतालों ने दी इलाज बंद करने की चेतावनी

editor
editor Published July 11, 2025
Last updated: 2025/07/11 at 11:17 AM
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राजस्थान में RGHS योजना पर संकट, निजी अस्पतालों ने दी इलाज बंद करने की चेतावनी

Contents
अस्पष्ट नियम, बढ़ता वित्तीय बोझकई ज्ञापन, लेकिन समाधान नहींयोजना में असमान वितरण का आरोपनिजी अस्पतालों की मांगेंचिकित्सा विभाग की प्रतिक्रियाविशेषज्ञों की राय

राजस्थान में संचालित राजस्थान गवर्नमेंट हेल्थ स्कीम (RGHS) एक बार फिर विवादों में आ गई है। राज्य के निजी अस्पतालों ने 15 जुलाई से इस योजना के तहत कैशलेस इलाज बंद करने का ऐलान किया है। अस्पतालों का कहना है कि वे अब केवल पुनर्भरण (रिइम्बर्समेंट) मॉडल पर ही इलाज करेंगे।

निजी अस्पताल संगठनों के संयुक्त बयान के अनुसार, 15 जुलाई सुबह 8 बजे से यह निर्णय लागू किया जाएगा। इसके बाद मरीजों को इलाज के बाद बिल और आवश्यक दस्तावेजों के साथ खुद सरकार से राशि की वसूली करनी होगी। RGHS योजना के अंतर्गत वर्तमान में लगभग 11 लाख सरकारी कर्मचारी, पेंशनर और उनके परिवार लाभान्वित हो रहे हैं।

अस्पष्ट नियम, बढ़ता वित्तीय बोझ

अस्पतालों ने आरोप लगाया कि योजना की शुरुआत में इसे CGHS (सेंट्रल गवर्नमेंट हेल्थ स्कीम) की तर्ज पर चलाने का भरोसा दिया गया था, लेकिन समय-समय पर नियमों में बदलाव कर दिए गए, जिनकी जानकारी अस्पतालों को समय पर नहीं दी गई।

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इन बदलावों के कारण क्लेम के भुगतान में देरी हुई, और टीपीए व क्लेम यूनिट्स की गलतियों के लिए अस्पतालों को ही दोषी ठहराते हुए जुर्माना लगाया गया। इससे छोटे और मंझोले अस्पतालों पर भारी आर्थिक दबाव बना और कुछ अस्पताल बंद होने की कगार पर पहुंच गए।

कई ज्ञापन, लेकिन समाधान नहीं

अस्पताल प्रतिनिधियों ने पिछले दो महीनों में राज्य सरकार के प्रमुख विभागों और अधिकारियों को 9 ज्ञापन सौंपे, लेकिन उनकी समस्याओं का समाधान नहीं हुआ। इससे असंतोष और गहरा गया है।

योजना में असमान वितरण का आरोप

अस्पताल संगठनों ने यह भी आरोप लगाया कि योजना में सरकारी अस्पतालों को भी शामिल कर दिया गया, जबकि उन्हें पहले से ही निःशुल्क इलाज की सुविधा थी। 4000 करोड़ के बजट में से 2000 करोड़ केवल ओपीडी और दवाइयों पर खर्च हो रहे हैं, और 1200 करोड़ की राशि सरकारी अस्पतालों को लौट रही है। निजी अस्पतालों के हिस्से में मात्र 800 करोड़ बचते हैं, जो पुरानी व्यवस्था के समान है, जबकि लाभार्थियों की संख्या छह गुना बढ़ चुकी है।

निजी अस्पतालों की मांगें

निजी अस्पतालों ने सुझाव दिए हैं कि योजना में सुधार के लिए:

  1. सरकारी अस्पतालों को अस्थायी रूप से योजना से बाहर किया जाए।

  2. ओपीडी सेवाओं को पुनर्भरण मॉडल पर किया जाए।

  3. भुगतान की समयसीमा तय हो।

  4. दस्तावेजी प्रक्रिया सरल हो।

  5. निजी डॉक्टर की पर्ची पर दवाओं का वितरण रोका जाए।

  6. सभी नए बदलावों पर निजी अस्पतालों से परामर्श हो।

  7. क्लेम का निस्तारण विशेषज्ञ डॉक्टरों द्वारा किया जाए।

चिकित्सा विभाग की प्रतिक्रिया

राज्य के चिकित्सा मंत्री गजेन्द्र सिंह खींवसर ने कहा कि विभाग को हाल ही में यह योजना सौंपी गई है और इसकी समीक्षा की जा रही है। अस्पतालों द्वारा योजना बंद करने की कोई औपचारिक सूचना अभी नहीं मिली है, लेकिन सरकार बात करने को तैयार है।

विशेषज्ञों की राय

प्राइवेट हॉस्पिटल एंड नर्सिंग होम्स सोसायटी जयपुर के अध्यक्ष डॉ. विजय कपूर ने कहा कि वर्तमान परिस्थिति में ओपीडी और फार्मेसी सेवाओं के लिए केवल पुनर्भरण आधारित मॉडल ही पारदर्शी और स्थायी समाधान हो सकता है। इससे सरकार की ओर से गड़बड़ी की संभावनाएं भी समाप्त हो जाएंगी।

अब देखना यह है कि सरकार और निजी अस्पतालों के बीच समाधान निकलता है या राज्य के लाखों लाभार्थियों को इलाज में असुविधा का सामना करना पड़ेगा।


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editor July 11, 2025
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