


कोटा की स्थाई लोक अदालत का फैसला: बिजली चोरी मामलों में केवल समझौता ही संभव
कोटा की स्थाई लोक अदालत ने एक महत्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया है कि बिजली चोरी के मामलों में अदालत केवल पक्षों के बीच समझौता कराने का अधिकार रखती है। ऐसे मामलों में गुण-दोष का निर्धारण करने अथवा अंतिम फैसला सुनाने का अधिकार स्थाई लोक अदालत को नहीं है।
यह फैसला कोटा निवासी एक व्यक्ति की अपील को खारिज करते हुए सुनाया गया। अपीलकर्ता ने अदालत से मांग की थी कि निजी बिजली कंपनी को वीसीआर (विजन कॉरपोरल रिपोर्ट) भरने से रोका जाए और उसके मकान पर तुरंत नया बिजली मीटर लगाया जाए। साथ ही उसने यह भी आग्रह किया कि कंपनी उसके परिवार को परेशान न करे।
जवाब में जयपुर डिस्कॉम ने बताया कि शहरी क्षेत्रों में बिजली आपूर्ति का जिम्मा अनुबंध के तहत निजी बिजली कंपनी को सौंपा गया है और उसी के अनुसार उसे वीसीआर भरने का अधिकार प्राप्त है।
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स्थाई लोक अदालत ने कहा कि विद्युत अधिनियम 2003 के तहत बिजली चोरी के मामलों में उसका दायरा केवल मध्यस्थता तक सीमित है। अदालत ने यह भी उल्लेख किया कि राजस्थान उच्च न्यायालय ने भी अपने एक निर्णय में यही रुख स्पष्ट किया है।
इसके अलावा अदालत ने उत्तर प्रदेश उच्च न्यायालय के एक फैसले का हवाला देते हुए यह भी कहा कि निजी बिजली कंपनियों को वीसीआर भरने तथा विद्युत चोरी निरोधक पुलिस थाने को प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) दर्ज करने का विधिक अधिकार प्राप्त है।
यह निर्णय बिजली चोरी जैसे मामलों में कानून की स्थिति को स्पष्ट करता है और बताता है कि ऐसे विवादों में समाधान की प्रक्रिया केवल समझौते के माध्यम से ही संभव है।