


रेलवे महिला कर्मचारियों ने जताई लैंगिक असमानता की चिंता, रेलवे बोर्ड ने मांगा सभी जोनों से जवाब
नई दिल्ली। भारतीय रेलवे में कार्यरत महिला लोको पायलटों और कर्मचारियों ने कार्यस्थल पर लैंगिक असमानता का गंभीर मुद्दा उठाया है। इस मुद्दे को लेकर दो प्रमुख यूनियन—ऑल इंडिया रेलवेमेंस फेडरेशन और नेशनल फेडरेशन ऑफ इंडियन रेलवे मेन—ने रेलवे बोर्ड से शिकायत की, जिसके बाद रेलवे बोर्ड को सभी 17 जोनों को Gender Neutral Policy का सख्ती से पालन कराने के निर्देश देने पड़े हैं।
महिला लोको पायलटों की मुख्य मांगें
रेलवे में इस समय लगभग 1 लाख महिला कर्मचारी कार्यरत हैं, जिनमें से 2000 से अधिक महिला लोको पायलट हैं। महिला लोको पायलटों का कहना है कि इंजन में वाशरूम नहीं होने, ड्यूटी स्थल के पास टॉयलेट न होने, प्रेग्नेंसी या छोटे बच्चे की देखभाल के लिए उचित अवकाश न मिलने जैसी समस्याएं उनके कार्य को बेहद कठिन बना रही हैं।
इसके अलावा उन्होंने यह भी मांग की है कि मालगाड़ी की ड्यूटी के बाद उन्हें मुख्यालय वापसी की सुविधा मिले, ताकि पारिवारिक जिम्मेदारियों का निर्वहन किया जा सके।
नौकरी बदलने को मजबूर
इन विषम परिस्थितियों के कारण कई महिला लोको पायलट अपनी नौकरी की श्रेणी बदलने तक को मजबूर हो रही हैं। यूनियनों का कहना है कि कार्यस्थलों पर नीति बनने के बावजूद देश के सभी जोनों में उसका पालन नहीं हो रहा, जिससे महिलाएं हतोत्साहित हो रही हैं।
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रेलवे बोर्ड ने उठाया कदम, पर नाखुश हैं महिलाएं
रेलवे बोर्ड ने सभी जोनों से स्पष्ट रिपोर्ट मांगी है और Gender Neutral Policy को सख्ती से लागू करने का निर्देश दिया है। बावजूद इसके, महिला कर्मचारियों की यूनियनें इस कदम से पूरी तरह संतुष्ट नहीं हैं। उनका कहना है कि सिर्फ पत्र जारी करने से समस्याएं नहीं सुलझेंगी, जब तक जमीनी स्तर पर ठोस कदम नहीं उठाए जाते।
आगे क्या?
यूनियनों ने चेतावनी दी है कि अगर जल्द ही महिला कर्मचारियों के लिए सुविधाओं में सुधार नहीं किया गया, तो वे आंदोलन का रुख भी अपना सकती हैं। रेलवे में महिला कर्मचारियों की बढ़ती संख्या के मद्देनज़र यह मुद्दा महत्वपूर्ण और संवेदनशील बन चुका है।