


संविधान के ‘सेक्युलर-सोशलिस्ट’ शब्दों पर RSS ने छेड़ी बहस की बात
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले ने एक बार फिर संविधान के कुछ अहम शब्दों पर सार्वजनिक बहस की जरूरत जताई है। उन्होंने कहा कि ‘सेक्युलर’ (धर्मनिरपेक्ष) और ‘सोशलिस्ट’ (समाजवादी) शब्द मूल संविधान का हिस्सा नहीं थे, बल्कि इन्हें आपातकाल (Emergency) के दौरान 1976 में 42वें संविधान संशोधन के जरिए जोड़ा गया था।
नई दिल्ली में आयोजित कार्यक्रम ‘आपातकाल के 50 साल’ में बोलते हुए होसबाले ने कहा कि उस समय संसद और न्यायपालिका स्वतंत्र रूप से काम नहीं कर रही थीं। उन्होंने तर्क दिया कि जब ऐसे अहम शब्द जोड़ने का निर्णय एक विशेष राजनीतिक माहौल में लिया गया था, तो आज लोकतांत्रिक तरीके से इस पर खुली चर्चा होनी चाहिए कि क्या ये शब्द संविधान में बने रहें या हटाए जाएं।
इमरजेंसी में हुआ था संविधान से छेड़छाड़ का दावा
होसबाले ने इमरजेंसी के दौर को संविधान की हत्या बताते हुए कहा कि उस दौरान एक लाख से ज्यादा लोगों को जेल भेजा गया, 250 से अधिक पत्रकारों को कैद किया गया, और करीब 60 लाख लोगों की जबरन नसबंदी करवाई गई थी। उन्होंने विपक्ष के नेताओं पर तंज कसते हुए कहा कि अगर यह सब उनके पूर्वजों ने किया था, तो उनके नाम पर माफी मांगनी चाहिए।
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क्या थे 42वें संशोधन के प्रावधान?
1976 में इंदिरा गांधी सरकार द्वारा लाए गए 42वें संशोधन के तहत प्रस्तावना में दो शब्द जोड़े गए थे:

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सोशलिस्ट (समाजवादी): इसका मकसद आर्थिक और सामाजिक समानता को बढ़ावा देना था।
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सेक्युलर (धर्मनिरपेक्ष): भारत को सभी धर्मों का समान रूप से सम्मान करने वाला देश घोषित किया गया।
होसबाले की अपील
दत्तात्रेय होसबाले का मानना है कि इन शब्दों के औचित्य पर आज के लोकतांत्रिक भारत में बहस होनी चाहिए। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि यह संविधान को कमजोर करने का नहीं, बल्कि लोकतंत्र को मजबूत करने का प्रयास है।
इस बयान के बाद एक बार फिर यह मुद्दा गरमा सकता है कि संविधान की मूल भावना क्या थी, और समय के साथ जोड़े गए प्रावधानों पर पुनर्विचार की आवश्यकता है या नहीं।