


हैदराबाद: मुस्लिम महिलाओं को अब ‘खुला’ के माध्यम से तलाक लेने के लिए पति की अनुमति की आवश्यकता नहीं होगी। यह स्पष्ट आदेश तेलंगाना हाईकोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में दिया है। कोर्ट ने कहा कि ‘खुला’ इस्लामी कानून के तहत महिलाओं का वैध और स्वतंत्र अधिकार है, जिसे रोका नहीं जा सकता।
क्या है मामला:
यह मामला 2012 में विवाह के बंधन में बंधे एक मुस्लिम दंपति से जुड़ा है। पत्नी ने घरेलू हिंसा और प्रताड़ना का आरोप लगाते हुए ‘खुला’ के तहत तलाक की मांग की थी। पति ने सहमति देने से इनकार कर दिया, जिसके बाद महिला ने धार्मिक संस्था से संपर्क किया, पर सुलह संभव नहीं हुआ। इसके बाद महिला ने फैमिली कोर्ट में याचिका दायर की, जिसे कोर्ट ने स्वीकार कर लिया। पति ने इस निर्णय को हाईकोर्ट में चुनौती दी।
हाईकोर्ट का फैसला:
तेलंगाना हाईकोर्ट की दो जजों की खंडपीठ, जिसमें न्यायमूर्ति मौसमी भट्टाचार्य और न्यायमूर्ति मधुसूदन राव शामिल थे, ने पति की अपील खारिज करते हुए फैमिली कोर्ट के आदेश को सही ठहराया। कोर्ट ने कहा कि ‘खुला’ इस्लाम में तलाक का एक वैध तरीका है, जिसमें महिला को विवाह समाप्त करने का अधिकार है और इसमें पति की सहमति की जरूरत नहीं है।
मध्यस्थता की भूमिका सीमित:
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि धार्मिक संस्थाएं या मुफ्ती केवल सुलह की कोशिश कर सकते हैं, लेकिन उनके पास तलाक प्रमाण पत्र जारी करने का अधिकार नहीं है। खुला की वैधता का अंतिम निर्णय सिर्फ अदालत कर सकती है।
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खुला की प्रक्रिया और अधिकार:
कोर्ट ने कहा कि जैसे पुरुषों को ‘तलाक-ए-बिद्दत’ के तहत तलाक का अधिकार है, वैसे ही ‘खुला’ महिलाओं का बराबर का अधिकार है। जब महिला खुला की इच्छा व्यक्त करती है और सुलह असफल होती है, तो पति के विरोध के बावजूद तलाक वैध माना जाएगा।
महिला अधिकारों की दिशा में बड़ा कदम:
इस फैसले को मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों की रक्षा और स्वतंत्रता की दिशा में एक मजबूत निर्णय माना जा रहा है। यह स्पष्ट करता है कि धार्मिक हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है और महिलाएं अब कानूनी रूप से खुला का अधिकार स्वतंत्र रूप से उपयोग कर सकती हैं