


बीकानेर। संयम के लिए विचारों में उदारता जरूरी है। उदारता के लिए तीन बातें जरूरी है। पहली खुला दिल, दूसरी बात असंकीर्ण दिमाग और तीसरी विस्तृत हद्धय है। यह तीन बातें जीवन में घटित होने पर उदारता आती है। यह सद्विचार श्री शान्त क्रान्ति जैन श्रावक संघ के 1008 आचार्य श्री विजयराज जी महाराज साहब ने अपने नित्य प्रवचन में व्यक्त किए। आचार्य श्री ने सेठ धनराज ढ़ढ्ढा की कोटड़ी में सोमवार को साता वेदनीय कर्म के सातवें बोल ‘संयम का पालन करता जीव साता वेदनीय का उपार्जन करता है’ के दूसरे बंध विचारों में उदारता पर व्याख्यान दिया।
आचार्य श्री विजयराज जी महाराज साहब ने बताया कि व्यक्ति के आचरण में अहिंसा होनी चाहिए। जिसमें जितनी अहिंसा होती है, वह उतना ही उदार होता है और जितना उदार होता है उतनी ही सहनशीलता आती है। अनुदार व्यक्ति कभी सहिष्णु नहीं हो सकता। ना ही संकीर्ण दृष्टिकोण से किसी को अपना बनाया जा सकता है। महाराज साहब ने कहा कि जो लोग यह कहते हैं कि मुझे किसी की जरूरत नहीं है। ऐसा बहुत से लोगों के मुंह से आपने भी सुना होगा। ऐसे लोगों से मैं यह कहना चाहता हूं कि बगैर सहयोग के काम नहीं चलता है। उदार व्यक्ति वही है जो सहयोग देता है और सहयोग लेता है। जो संयम का साधक होता है, वह जितना सहयोग देता है, उसमें उतना ही अर्पण की भावना आती है और यही भावना उसे उदार बनाती है। जिसमें केवल लेने का भाव है, वह उदार नहीं बनता। उच्च कोटी का साधक वही है, जिसके रोम-रोम में उदारता समाई है। मेरी धारणा है कि हम कुछ और बने ना बनें लेकिन साधक तो बने हीं बनें।
संसार में कन्फ्यूजन ही कन्फ्यूजन
आचार्य श्री विजयराज जी महाराज साहब ने कहा कि संसार में कन्फ्यूजन ही कन्फ्यूजन है। तालमेल की कमी, अनिश्चितता, घबराहट की स्थिति बनी ही रहती है। सुबह मेरे पास खुशी अपने मम्मी के साथ आई थी। कह रही थी कि महाराज साहब बहुत कन्फ्यूजन रहता है। मैं कहना चाहता हूं कि कनसेप्ट क्लियर रखो, कन्फ्यूजन मत रखो। संसार में दो मार्ग है। एक साधना का दूसरा भोग का, एक वासना का दूसरा वैराग्य का है। इस तरह से हमारे पास दो रास्ते होते हैं। यह हमें तय करना होता है कि हम किस ओर जाना चाहते हैं। संसार का सुख चाहिए, विषय का सुख चाहिए तो वह रास्ता चुनो जो संसारी चुनते हैं। ध्यान-ज्ञान और मोक्ष चाहिए तो साधना करो। दूसरा अपने पर पूरा विश्वास रखो, अपने पर भरपूर विश्वास व्यक्ति के मन में होना चाहिए। अपने आप को मोटिवेशन करने के लिए अपना आत्मविश्वास बढ़ाना चाहिए।
सफलता का संबंध संकल्प से
आचार्य श्री ने कहा कि व्यक्ति संकल्पित होता है, फिर असफल होता नहीं, वह सफलता के सोपान तय करता है। संसारी लोग व्यक्ति को धर्म-ध्यान, सत्संग से रोकते हैं। लेकिन वही व्य1ित जब दुव्र्यसन करता है, अधर्म में रहता है उसे कुछ नहीं कहता। मैं पूछना चाहता हूं ऐसे लोगों से कि भाई ‘धर्म के साथ यह सौतेला व्यवहार क्यों’ मुझे अपने हित के लिए क्या करना है, यही चिंतन रखना चाहिए। वर्ना, दुनिया तो बहकायेगी, भटकायेगी, दुनिया की कही करोगे तो कभी आगे नहीं बढ़ सकोगे।
डगमग नैया डूबती है
आचार्य श्री ने बताया कि जीवन में समभाव के साथ रहो, जो व्यक्ति डगमग करता है, उसकी नैया डूबती ही है। अपने भावों को, विचारों को मजबूत बनाओ। याद रखो पहले दुनिया साथ नहीं देती लेकिन बाद में आपके कार्य की प्रशंषा भी करती है। उन्होंने अपने स्वयं का उदाहरण देकर बताया कि अगर विचारों में दृढ़ता हो तो आप को कोई अपने निर्णय से डगमगा नहीं सकता।
भजनों के माध्यम से दिया संदेश
‘सोते- सोते ही निकल गई सारी जिंदगी, ओ भैया सारी जिंदगी, ये प्यारी जिंदगी, बोझा ढोते हुए निकल गई ये सारी जिंदगी’ के माध्यम से जीवन का सार बताया। वहीं भजन ‘जिंदगी में हजारों से मेला जुड़ा, हंस जब-जब उड़ा अकेला उड़ा, ठाठ सारे के सारे रह गए, कोठी – बंगले खड़े के खड़े रह गए, ठाठ सारे के सारे धरे रह गए’। महाराज साहब ने बताया कि जीवन मिला है तो इसे सत्कर्म में लगाओ, धर्म में ध्यान लगाओ, एक दिन हंस रूपी आत्मा निकल जाएगी और सब सोचा, किया धरा रह जाएगा।
मंदसौर मेें मांगा चातुर्मास
श्री शान्त क्रान्ति जैन श्रावक संघ के अध्यक्ष विजयकुमार लोढ़ा ने बताया कि आचार्य श्री का सानिध्य पाने और दर्शनलाभ के साथ जिनवाणी का श्रवण करने के लिए मंदसौर, राजनंदगांव बैंगलुरु से श्रावक-श्राविकाओं का दल पहुंचा। सभी ने वर्ष 2023 का चातुर्मास मंदसौर में करने का आग्रह किया। वहीं बैंगलुरु के रितेश पावेचा ने भी अपने भाव रखे। प्रवचन विराम से पूर्व आचार्य श्री ने सभी को मंगलिक प्रदान की तथा तप करने वालों को पच्चक्खान कराए।
