


जमानत के बदले रिश्वत का आरोप: हाईकोर्ट ने जांच की अनुमति नहीं दी, लेकिन जज को ट्रांसफर किया गया
दिल्ली में जमानत के बदले रिश्वत मांगने के गंभीर आरोपों के बाद एंटी करप्शन ब्रांच (ACB) ने विशेष अदालत के एक जज के खिलाफ जांच की अनुमति मांगी थी। हालांकि दिल्ली हाईकोर्ट ने फरवरी में कहा कि इस स्तर पर “पर्याप्त सबूत” नहीं हैं, इसलिए अनुमति नहीं दी जा सकती। साथ ही ACB को सलाह दी गई कि वह अपनी जांच जारी रखे और यदि आगे कोई ठोस प्रमाण मिलें तो दोबारा अदालत से अनुमति ले।
ACB की चिट्ठी, हाईकोर्ट का जवाब
द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, 14 फरवरी को हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि उपलब्ध साक्ष्य किसी न्यायिक अधिकारी के खिलाफ सीधी जांच के लिए पर्याप्त नहीं हैं। फिर भी कोर्ट ने ACB को हतोत्साहित नहीं किया, बल्कि जांच जारी रखने को कहा। इसी बीच 20 मई को संबंधित जज का तबादला राउज एवेन्यू कोर्ट से कर दिया गया।
कोर्ट स्टाफ के खिलाफ FIR दर्ज
ACB ने 16 मई को कोर्ट के अहलमद (स्टाफ सदस्य) के खिलाफ FIR दर्ज की। इसके बाद उसने अग्रिम जमानत की अर्जी दी, जिसे 22 मई को कोर्ट ने खारिज कर दिया। अहलमद के वकीलों ने इसे ‘झूठा और मनगढ़ंत मामला’ बताया, वहीं सरकारी पक्ष ने कहा कि वह मुख्य आरोपी है और सबूतों के साथ छेड़छाड़ की आशंका है।
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मामले की शुरुआत कैसे हुई?
यह पूरा विवाद 2023 में शुरू हुआ जब एक GST अधिकारी पर फर्जी कंपनियों को अवैध टैक्स रिफंड देने के आरोप में केस दर्ज हुआ। ACB ने 16 आरोपियों को गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया। जमानत याचिकाएं लगातार टाली जाती रहीं, जिससे परिवारों में संदेह गहराया।

पहली शिकायत और धमकी के आरोप
ACB को पहली शिकायत 30 दिसंबर 2024 को मिली, जिसमें एक रिश्तेदार ने आरोप लगाया कि जमानत दिलाने के लिए कोर्ट अधिकारियों ने 85 लाख से 1 करोड़ रुपये तक की रिश्वत मांगी। जब उन्होंने इनकार किया, तो याचिका खारिज कर दी गई। आरोप यह भी है कि एक आरोपी ने उन्हें धमकाया कि यदि पैसे नहीं दिए गए तो जज उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई करेंगे।
दूसरी शिकायत और ऑडियो रिकॉर्डिंग
20 जनवरी को दूसरी शिकायत मिली, जिसमें कहा गया कि कोर्ट स्टाफ ने प्रति व्यक्ति 15-20 लाख रुपये की मांग की थी। ACB के अनुसार, ऑडियो रिकॉर्डिंग और घटनाओं की समयरेखा शिकायतों से मेल खाती हैं, जिससे आरोपों की गंभीरता बढ़ जाती है।
ACB की शुरुआती जांच में क्या सामने आया?
जांच में सामने आया कि रिश्वत मांगने के आरोप निराधार नहीं हैं। ऑडियो रिकॉर्डिंग, तारीखों का मिलान और शिकायतकर्ताओं के बयान, कोर्ट स्टाफ और न्यायिक प्रक्रिया पर संदेह पैदा करते हैं।
निष्कर्ष
फिलहाल, हाईकोर्ट की अनुमति के बिना जज के खिलाफ सीधी जांच संभव नहीं, लेकिन कोर्ट स्टाफ पर कार्रवाई शुरू हो चुकी है। अब ACB की अगली चुनौती है—सबूतों को और मजबूत कर न्यायिक जांच को आगे बढ़ाना। अदालतों में पारदर्शिता और न्याय की उम्मीद बनाए रखने के लिए इस मामले की निष्पक्षता से जांच जरूरी है।