


बीकानेर। तप के लिए तीन बातें जरूरी है, जब तन में क्षमता हो, मन में समता हो और आत्मा में रमणता हो तब तप होता है। इन तीनों में से किसी में भी कमी हो तो तप नहीं किया जा सकता। प्रकांड विद्वान, युगदृष्टा, जैनाचार्य श्री ज्ञान चंद्र जी म. सा. के आज्ञानुवृति आर्य महात्मा जी म. सा. एवम आर्य अनुत्तर मुनि जी म. सा. ने यह सद्विचार गंगाशहर स्थित अरिहंत भवन में आयोजित सुश्री अंकिता गोरधन जी मिन्नी की तपाभिनंदन समारोह में अपने भावों में व्यक्त किए।
आर्य अनुत्तर मुनि ने कहा कि तरूण तपस्विनी सुश्री अंकिता गोरधन जी मिन्नी में यह तीनों बातें दिखाई दे रही हैं, इसलिए इन्होंने 30 दिवसीय मास खमण की तपस्या पूर्ण करने का प्रत्याख्यान लिया तथा इसके साथ ही इसी मिन्नी परिवार के जय कुमार मिन्नी ने भी 12 दिवसीय उपवास का प्रत्याख्यान लिया। यह इनके तप का प्रभाव है, इनमें से एक भी कमी रहती तो यह तप नहीं किया जा सकता था, इसलिए तप का बड़ा महत्व है।
एक अन्य कहावत भी है कि भूखे पेट ना होए भजन, फिर भी जो क्षमता रखते हैं, समता रखते हैं और अपने आप में रमणता रखते हैं, वह भूखे भी भजन करते हैं।
- Advertisement -

श्रावक श्राविकाओं से खचाखच भरा अरिहंत भवन काफी समय तक आचार्य प्रवर श्री ज्ञान चंद्र जी म. सा. के जयकारों से गुंजायमान रहा। सम्मान समारोह में संघ के राष्ट्रीय प्रवक्ता जयचंद लाल सुखानी ने कहा कि जो लोग तप नहीं कर सकते उन्हें तप करने वालों की अनुमोदना करनी चाहिए। अनुमोदना करने से तप करने वालों को जो पुण्य मिलता है, उसका कुछ भाग अनुमोदना करने वालों को भी मिलता है।
सम्मान समारोह श्री अरिहंतमार्गी जैन महासंघ के अध्यक्ष डॉ. नरेश गोयल, महामंत्री पूनम चंद सुराना, गुलाब चंद दफ्तरी, शुभकरण दफ्तरी, सनोज लुनावत, पवन चांडक, राजेश गोयल, परवेश गोयल आदि सभी ने तपस्वियों का बहुमान किया।