


झोपड़ी से लेकर न्यायालय की सर्वोच्च कुर्सी तक का सफर तय कर चुके जस्टिस भूषण रामकृष्ण गवई अब भारत के नए मुख्य न्यायाधीश (CJI) बनने जा रहे हैं। मंगलवार को निवर्तमान CJI संजीव खन्ना के सेवानिवृत्त होने के बाद, बुधवार 15 मई को जस्टिस गवई देश के 51वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ लेंगे। वे भारत के दूसरे दलित CJI होंगे। इससे पहले जस्टिस के. जी. बालकृष्णन ने यह पद संभाला था।
जस्टिस गवई का जन्म 24 नवंबर 1960 को हुआ था। वे तीन भाई-बहनों में सबसे बड़े हैं। उनका बचपन महाराष्ट्र के अमरावती जिले के फ्रीज़रपुरा स्लम इलाके में बीता, जहां उन्होंने कक्षा 7 तक एक नगरपालिका मराठी स्कूल में पढ़ाई की। इसके बाद उन्होंने बी.कॉम के बाद कानून की पढ़ाई की और 1985 में 25 वर्ष की आयु में वकालत शुरू की।
उनके पिता रामकृष्ण सूर्यभान गवई एक प्रमुख अंबेडकरवादी नेता थे और रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया (गवई) के संस्थापक रहे। वे अमरावती से सांसद और बिहार, सिक्किम व केरल के राज्यपाल भी रह चुके हैं। बचपन से ही सामाजिक कार्यों के बीच पले-बढ़े जस्टिस गवई ने साधारण पारिवारिक माहौल में रहते हुए घर के कामकाज में भी हाथ बंटाया।
न्यायिक जीवन में उन्होंने बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच से शुरुआत की और क्रिमिनल मामलों में अपर लोक अभियोजक, तथा सिविल मामलों में सरकारी वकील के रूप में सेवाएं दीं। वे अपने चयनित सहयोगी वकीलों के साथ कार्य करते थे, जिनमें से दो आगे चलकर हाईकोर्ट के जज बने।
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2003 में वे बॉम्बे हाईकोर्ट के अतिरिक्त न्यायाधीश बने और 2005 में स्थायी नियुक्ति मिली। वकालत के दौरान उन्होंने सुप्रीम कोर्ट, हाईकोर्ट, जिला अदालतों और तहसील स्तर तक मुकदमे लड़े। वंचित समाज के प्रति उनका समर्पण और प्रो बोनो कार्य उन्हें एक संवेदनशील न्यायाधीश के रूप में स्थापित करता है।

नागपुर और अमरावती के वकील उन्हें एक विनम्र, सरल और जनसरोकारों से जुड़े व्यक्ति के रूप में याद करते हैं। वे जूनियर वकीलों को बढ़ावा देने में विश्वास रखते थे और उन्हें अवसर देने के लिए वरिष्ठ वकीलों को अवकाश कालीन बेंचों से दूर रखते थे।
मुख्य न्यायाधीश के रूप में उनका कार्यकाल लगभग छह महीने का रहेगा, लेकिन इसमें उन्हें कई बड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। न्यायपालिका की निष्पक्षता और विश्वसनीयता को लेकर उठते सवालों के बीच, वे वक्फ अधिनियम के संशोधनों से जुड़े एक अहम मामले की सुनवाई 15 मई को करेंगे। इसके अलावा, कुछ हाईकोर्ट जजों के आचरण को लेकर भी गंभीर चर्चाएं चल रही हैं।
जस्टिस गवई का जीवन संघर्ष, सेवा और न्याय की भावना का प्रतीक है, जो भारतीय न्यायपालिका के सामाजिक समावेश की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।