


Operation Sindoor: परमाणु खतरे से सहमा अमेरिका, पाकिस्तान की गुहार पर कूदा संघर्षविराम में
भारत-पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनाव और परमाणु हमले की आशंका के बीच अमेरिका ने शांति बहाली के प्रयासों में सक्रिय भूमिका निभाई। अमेरिकी रक्षा विभाग पेंटागन में इस मुद्दे पर उच्चस्तरीय चर्चा हुई। पाकिस्तान ने भारत के सैन्य हमलों से घबराकर संघर्षविराम के लिए अमेरिका से मदद मांगी थी।
पाकिस्तान द्वारा 400-500 ड्रोन भेजने और भारतीय सैन्य ठिकानों पर हमलों के बाद हालात गंभीर हो गए थे। सबसे चिंताजनक स्थिति तब बनी जब पाकिस्तान के रावलपिंडी स्थित नूर खान एयरबेस पर विस्फोट हुए। यह एयरबेस पाकिस्तान की सेना के लिए रणनीतिक रूप से बेहद अहम है और इसके पास ही देश की परमाणु योजना का मुख्यालय भी है। माना जा रहा है कि भारत के इस हमले से पाकिस्तान को संकेत मिला कि परमाणु प्रतिष्ठान भी निशाने पर आ सकते हैं।
इसी बीच अमेरिका की चिंता और बढ़ गई। अमेरिका के उपराष्ट्रपति जेडी वेंस और विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने दोनों देशों के अधिकारियों से संपर्क किया। वेंस ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से बातचीत की, जिसमें मोदी ने स्पष्ट संदेश दिया कि भारत पाकिस्तान के हर दुस्साहस का जवाब देगा।
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व्हाइट हाउस को यह समझ में आ गया था कि केवल सार्वजनिक बयान या सऊदी अरब और यूएई जैसे देशों के हस्तक्षेप से कोई हल नहीं निकलने वाला। इसलिए अमेरिका ने सीधे हस्तक्षेप करते हुए युद्धविराम की दिशा में कदम उठाया।
एक पूर्व अमेरिकी अधिकारी के अनुसार, पाकिस्तान को सबसे अधिक डर अपने परमाणु कमान ढांचे के टूटने का है। नूर खान एयरबेस पर हमला इसी का संकेत था कि भारत अपनी सैन्य क्षमता का उपयोग कर सकता है।

हालांकि, भारत ने संघर्षविराम में अमेरिका की किसी भूमिका को सार्वजनिक रूप से स्वीकार नहीं किया है। इसके विपरीत, पाकिस्तान की ओर से संघर्षविराम की पुष्टि और अमेरिका की भूमिका को लेकर खुले संकेत दिए गए हैं।
विदेश मंत्रालय ने यह भी साफ कर दिया है कि भारत-पाक के बीच किसी भी तरह की एनएसए स्तर की बातचीत नहीं हो रही है। सोशल मीडिया पर चल रही अफवाहों को नकारते हुए मंत्रालय ने कहा कि इस तरह की चर्चाओं में सच्चाई नहीं है।
ट्रंप प्रशासन को यह आशंका थी कि यदि हस्तक्षेप नहीं किया गया, तो भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध की स्थिति बन सकती है, जिसमें परमाणु हथियारों के प्रयोग की आशंका भी थी। वेंस के अनुसार, उनकी प्राथमिकता यही थी कि दोनों पक्षों को तनाव कम करने के लिए प्रेरित किया जाए।
भारत ने शुरुआती कार्रवाई आतंकी ठिकानों पर केंद्रित रखी थी, लेकिन पाकिस्तान की आक्रामकता बढ़ने पर अब सैन्य ठिकानों को भी निशाना बनाया जा रहा था। ऐसे में अमेरिका को हस्तक्षेप करना पड़ा ताकि हालात और न बिगड़ें।