


सिंधु जल संधि: भारत ने पानी रोकने के लिए तीन चरणों में बनाई रणनीति, 5-10 साल लग सकते हैं
भारत सरकार ने पहलगाम आतंकी हमले के बाद सिंधु जल संधि को स्थगित करने का बड़ा फैसला किया है। इस कदम के जरिए पाकिस्तान को कड़ा संदेश दिया गया है। सरकार ने अब तीन पश्चिमी नदियों—झेलम, चिनाब और सिंधु—के पानी को रोकने के लिए ठोस योजना तैयार कर ली है। हालांकि इन नदियों का पूरा बहाव रोकने में 5 से 10 साल तक का समय लग सकता है, लेकिन भारत ने इस दिशा में तेजी से कदम बढ़ा दिए हैं।
सिंधु जल संधि स्थगन से भारत को मिलेगी नई ताकत
अब तक भारत तीन पश्चिमी नदियों से केवल 10 एमएएफ पानी का भंडारण कर रहा था, जबकि पाकिस्तान हर साल 135 एमएएफ पानी का लाभ उठाता रहा है। संधि के चलते भारत सिर्फ रन ऑफ रिवर बांध बनाकर जलविद्युत उत्पादन कर सकता था। अब स्थगन के बाद भारत को बड़े जल भंडारण बांध बनाने, नहरें बनाने और अतिरिक्त भंडारण क्षमता विकसित करने की पूरी छूट मिल गई है। इससे कृषि, उद्योग, बिजली उत्पादन और पेयजल के क्षेत्र में बड़ा लाभ मिलेगा।
भारत की तीन चरणों वाली योजना:
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तात्कालिक उपाय: मौजूदा बांधों और जल संरचनाओं से गाद हटाकर (डी-सिल्टिंग) भंडारण बढ़ाया जाएगा। निर्माणाधीन परियोजनाओं को तेजी से पूरा किया जाएगा। पाकिस्तान अब भारत के जल प्रबंधन में हस्तक्षेप नहीं कर सकेगा और उसे संवेदनशील डेटा भी नहीं मिलेगा।
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मध्यम अवधि: मौजूदा बांधों की भंडारण क्षमता बढ़ाई जाएगी और पश्चिमी नदियों पर छोटे-छोटे बांध एवं जल विद्युत परियोजनाएं विकसित की जाएंगी।
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दीर्घ अवधि: बड़े जल भंडारण बांधों और नहरों का निर्माण होगा ताकि पानी को भारत की जरूरतों के अनुसार डायवर्ट किया जा सके। इस कार्य में 5 से 10 साल का समय लग सकता है।
मुख्य नदियों पर रणनीति:
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झेलम नदी: भारत में इस पर कोई बड़ा जल भंडारण बांध नहीं है। वुलर झील के पास तुलबुल नेविगेशन प्रोजेक्ट, जो पाकिस्तान के विरोध के चलते रुका था, अब फिर से शुरू किया जा सकता है।
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सिंधु नदी: भारत में सिंधु नदी पर फिलहाल एकमात्र बांध निमू बाजगो (लद्दाख) है। स्थगन के बाद यहां मध्यम और दीर्घकालीन अवधि में नए भंडारण बांध बनाए जा सकते हैं।
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चिनाब नदी: भारत में बगलिहार, सलाल और दुलहस्ती जैसे रन ऑफ रिवर बांध पहले से मौजूद हैं। अब पाकल दुल, किरु और किश्तवाड़ की मौजूदा परियोजनाओं को जल भंडारण क्षमता बढ़ाने की दिशा में बदला जाएगा। रतले बांध 2026 तक तैयार हो जाएगा, जिससे अतिरिक्त पानी भंडारित करने की भी योजना है।
निष्कर्ष:
भारत का यह कदम पाकिस्तान के लिए एक बड़ा झटका है। सिंधु जल संधि का स्थगन न केवल भारत को अपने संसाधनों पर अधिकार दिलाएगा, बल्कि पाकिस्तान को भी पानी के लिए भारी संकट में डाल सकता है। आने वाले वर्षों में इस नीति के असर दिखने शुरू हो सकते हैं।