उत्तर प्रदेश और नेपाल में ईसाई मिशनरियों की सक्रियता और उनके मतांतरण के प्रयासों ने नई चिंताएं खड़ी कर दी हैं। सुरक्षा एजेंसियों की रिपोर्ट में उत्तर प्रदेश के बाराबंकी, सीतापुर, बलरामपुर, श्रावस्ती और बहराइच जैसे क्षेत्रों में मिशनरियों की जड़ों के विस्तार और उनके बदले हुए तरीकों पर केंद्रीय गृह मंत्रालय को सचेत किया गया है।
नई रणनीतियां और निशाना:
रिपोर्ट के अनुसार, मिशनरियां अब कोरियन पास्टरों को मतांतरण की जिम्मेदारी सौंप रही हैं। ये पास्टर कर्नाटक, पंजाब और केरल जैसे राज्यों में सक्रिय नेटवर्क बनाकर नेपाल और यूपी के गरीब, असहाय, दलित और जनजातीय समुदायों पर केंद्रित हैं। विदेशों से मिले फंड का उपयोग कर गरीबों को आर्थिक और स्वास्थ्य लाभ का लालच दिया जा रहा है।
चंगाई सभा का सच:
सीतापुर और अयोध्या के अनुभव बताते हैं कि “चमत्कारिक” इलाज के नाम पर हाई-पावर एंटीबायोटिक्स और स्टेरॉयड का उपयोग किया जा रहा है, जिससे मरीजों को अस्थायी राहत मिलती है। इसे “चंगाई” कहकर धर्म परिवर्तन के लिए प्रेरित किया जा रहा है। लेकिन, डॉक्टरों के अनुसार, इसका दीर्घकालिक दुष्प्रभाव स्वास्थ्य पर गंभीर पड़ता है।
मधेश मॉडल का प्रभाव:
नेपाल के मधेश क्षेत्र में भी ईसाई मिशनरियों की सक्रियता तेजी से बढ़ रही है। 1951 में नेपाल में एक भी ईसाई नहीं था, लेकिन 2021 तक इनकी संख्या 6.45 लाख हो गई। यहां कोरियन पास्टर गरीब और दलित समुदायों को आर्थिक और आध्यात्मिक आधार पर लुभा रहे हैं। इससे नेपाल की सांस्कृतिक पहचान और राष्ट्रीय एकता पर खतरा मंडरा रहा है।
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सतर्कता की जरूरत:
पूर्व डीजीपी विक्रम सिंह और नेपाल के उपेंद्र यादव ने इस बढ़ते प्रभाव को लेकर सचेत किया है। इसे धार्मिक स्वतंत्रता का मामला न मानकर शोषण का मामला बताया गया है। यूपी और नेपाल में मिशनरियों के दीर्घकालिक उद्देश्यों को देखते हुए स्थानीय प्रशासन और सरकारों को सतर्क रहना जरूरी है।