भारत की विदेश नीति के विकास में कुछ महत्वपूर्ण घटनाओं ने क्रांतिकारी बदलाव लाए। इनमें 1991 में मनमोहन सिंह के नेतृत्व में हुए आर्थिक उदारीकरण और 1998 में अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में पोखरण परमाणु परीक्षण का उल्लेखनीय योगदान रहा। इन घटनाओं ने भारत की विदेश नीति को नई दिशा और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई।
2004 में प्रधानमंत्री बनने के बाद डॉ. मनमोहन सिंह ने विदेश नीति को प्राथमिकता दी। उन्होंने भारत-अमेरिका असैन्य परमाणु समझौते को सफलतापूर्वक अंजाम दिया। यह समझौता भारत की ऊर्जा सुरक्षा के साथ-साथ कूटनीतिक संबंधों के लिए मील का पत्थर साबित हुआ। इसी दौरान, भारत को परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (एनएसजी) से क्लीन-चिट भी मिली।
विदेश मंत्री एस. जयशंकर, जो उस समय अमेरिका के संयुक्त सचिव थे, इस समझौते के अहम वास्तुकारों में शामिल रहे। उन्होंने मनमोहन सिंह के नेतृत्व में भारत-अमेरिका संबंधों को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाने में मदद की। इस ऐतिहासिक कदम के लिए डॉ. सिंह ने राजनीतिक दबावों का सामना किया और 2008 में अपनी सरकार तक को दांव पर लगा दिया।
मनमोहन सिंह द्वारा रखी गई इस विदेश नीति की मजबूत नींव पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी विदेश नीति को और प्रभावशाली बनाया। आज, भारत का अमेरिका, फ्रांस, रूस, जापान सहित कई देशों के साथ असैन्य परमाणु समझौता है, जो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की साख को और मजबूत करता है।
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डॉ. जयशंकर ने मनमोहन सिंह को श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि उन्होंने न केवल भारतीय अर्थव्यवस्था बल्कि विदेश नीति में भी अभूतपूर्व योगदान दिया। उनकी दूरदर्शिता और कुशल नेतृत्व ने आज की विदेश नीति की नींव तैयार की।