नेशनल मैथमेटिक्स डे 2024: गणितीय चमत्कारों की पाठशाला – मारजा शिक्षा पद्धति
विमल छगांणी। गणित की ऐसी गणना, जो पलक झपकने से पहले हल हो जाए, आज भी मारजा पद्धति में पढ़े लोगों की पहचान है। राजस्थान की इस अद्वितीय शिक्षा प्रणाली में बच्चों ने न सिर्फ गणित सीखा, बल्कि उसे अपनी जीवनशैली में गहराई से आत्मसात भी किया।
मारजा पद्धति की विशेषताएं:
- सरल और प्रभावी सामग्री: मारजा पद्धति में बच्चों को केवल स्लेट (पाटी) और मिट्टी के बर्तन (बर्तना) का उपयोग सिखाया गया।
- पारंपरिक गणना प्रणाली: इस पद्धति में बच्चों ने सवाई, डेढ़ा, ढाया, ऊंठा, और पूणा जैसे पारंपरिक पहाड़े सीखे। बड़ी गणनाएं, वर्गमूल, और विभाजन भी बिना किसी उपकरण के हल किए जाते थे।
- अनुशासन और नियमितता: सभी छात्र एक साथ अध्ययन करते थे। कठोर अनुशासन, नियमित माळनी (गणना अभ्यास), और पारंपरिक लयबद्ध तरीके से गणित पढ़ाने पर जोर दिया जाता था।
गणना का रोचक तरीका:
33 को 33 से गुणा करने पर ‘तेतिया खेतिया दसे नयासी’ का अर्थ 1089 होता है। इसी तरह, 100 को 100 से गुणा करने पर ‘सौ सिलंगी माता दसे हजार’ का मतलब 10,000 होता है।
मारजाओं का योगदान:
शिवनाथा मारजा, चम्पा मारजा, गिरधर मारजा, और बृजलाल मास्टर जैसे शिक्षकों ने इस शिक्षा पद्धति को अपने अनोखे अंदाज से सजीव रखा। इन मारजाओं ने हजारों विद्यार्थियों को गणित में पारंगत बनाया।
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आधुनिक शिक्षा में महत्व:
पूर्व शिक्षक बृजलाल पुरोहित के अनुसार, शुरुआती शिक्षा बच्चों के जीवन का आधार होती है। मारजा पद्धति 100% मातृभाषा पर आधारित थी और बच्चों के लिए गणित को रोचक और मनोरंजक बनाती थी। आधुनिक शिक्षा पद्धति के साथ इस पद्धति को पुनः अपनाने की जरूरत है।
वर्तमान स्थिति:
बीकानेर में मारजा स्कूल कभी शिक्षा के प्रमुख केंद्र हुआ करते थे, लेकिन अब ये पूरी तरह से खत्म हो चुके हैं। हालांकि, इस पद्धति से पढ़े हुए लोग और उनके द्वारा सिखाई गई शैली आज भी प्रेरणा का स्रोत हैं।
संक्षेप में:
नेशनल मैथमेटिक्स डे 2024 पर मारजा शिक्षा पद्धति को याद करते हुए हमें यह समझना चाहिए कि यह केवल गणित पढ़ाने की एक प्रणाली नहीं, बल्कि हमारे गौरवशाली शैक्षिक इतिहास का हिस्सा है।