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बीकानेर

सुप्रीम कोर्ट ने प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट, 1991 की वैधता पर सुनवाई स्थगित की, नए मुकदमे दायर करने पर रोक

editor
editor Published December 13, 2024
Last updated: 2024/12/13 at 6:38 PM
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Supreme Court Postpones Hearing on Validity of Places of Worship Act, 1991, Imposes Ban on New Lawsuits
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सुप्रीम कोर्ट ने आज ‘प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट, 1991’ के प्रावधानों की वैधता चुनौती वाली याचिकाओं पर सुनवाई स्थगित कर दी। चीफ जस्टिस संजीव खन्ना ने कहा कि केंद्र सरकार के जवाब के बाद ही सुनवाई जारी की जाएगी। उन्होंने यह भी आदेश दिया कि जब तक इन याचिकाओं का निपटारा नहीं हो जाता, तब तक देश में इस कानून के तहत मंदिर-मस्जिद विवादों सहित अन्य नए मुकदमे दायर नहीं किए जाएंगे। साथ ही अदालतों को आदेश दिया गया है कि वे इन मामलों में कोई फैसला न लें और न ही सर्वेक्षण का आदेश दें।

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से चार सप्ताह में इस पर हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया है, और केंद्र के जवाब के बाद संबंधित पक्षों को भी चार सप्ताह का समय दिया गया है। विशेष पीठ में सीजेआइ संजीव खन्ना, जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस के.वी. विश्वनाथन शामिल थे।

इस एक्ट को असंवैधानिक घोषित करने की मांग करने वाली याचिकाएं भाजपा नेता अश्विनी उपाध्याय, सुब्रमण्यम स्वामी, कथावाचक देवकीनंदन ठाकुर, और अन्य ने दायर की हैं। वहीं, जमीयत उलमा-ए-हिंद और मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड जैसी संस्थाओं ने इसके खिलाफ याचिकाएं दायर कर इसे देश में धार्मिक स्थलों के खिलाफ मुकदमों की बाढ़ का कारण बताया है।

सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश का असर मथुरा, भोजशाला, ज्ञानवापी, और संभल जैसे मामलों पर पड़ेगा, जहां सुनवाई तो जारी रहेगी लेकिन कोई निर्णय नहीं दिया जा सकेगा।

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क्या है प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991?
इस एक्ट के अनुसार, देशभर के सभी धार्मिक स्थल 15 अगस्त 1947 की स्थिति में बने रहेंगे, और कोई भी अदालत या सरकार इन स्थलों के स्वरूप में बदलाव नहीं कर सकती। यह एक्ट धार्मिक स्थलों पर नए दावे या वाद दायर करने पर रोक लगाता है।


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editor December 13, 2024
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