कानपुर में एक तलाक के मामले में सुनवाई के दौरान पत्नी बिना सिंदूर लगाए कोर्ट पहुंची, जिसके बाद कोर्ट ने तलाक की अर्जी मंजूर कर ली। इस मामले में पारिवारिक न्यायालय तृतीय के अपर प्रधान न्यायाधीश आलोक कुमार ने टिप्पणी करते हुए कहा कि भारतीय परंपरा में मांग में सिंदूर विवाह की स्वीकार्यता का प्रतीक है। सिंदूर न लगाना भावनात्मक रूप से पति-पत्नी के संबंधों के समाप्त होने का संकेत है।
मामला:
56 वर्षीय पति, जो स्टेट बैंक से वीआरएस ले चुके हैं, ने 46 वर्षीय पत्नी से तलाक की मांग की। उनका विवाह दिसंबर 2008 में आर्य समाज पद्धति से हुआ था। पति ने आरोप लगाया कि शादी के बाद से पत्नी उनकी 78 वर्षीय विधवा मां को घर से निकालने का दबाव बना रही थी। नवंबर 2011 में, जब पति को लाइलाज बीमारी (बर्जर) हुई, तो पत्नी ने तलाक और 25 लाख रुपये हर्जाने की मांग की।
पत्नी का पक्ष:
पत्नी ने आरोप लगाया कि ससुराल वालों ने दहेज में पांच लाख रुपये और जेवर की मांग पूरी न होने पर उसे प्रताड़ित किया और घर से निकाल दिया।
कोर्ट की कार्यवाही:
मुकदमे की सुनवाई के दौरान पत्नी बिना सिंदूर लगाए कोर्ट में पेश हुई। पति के वकील द्वारा इस पर सवाल पूछे जाने पर वह कोई स्पष्ट जवाब नहीं दे सकीं। कोर्ट ने यह भी पाया कि विवाह बिना दान-दहेज के हुआ था। साथ ही, पत्नी द्वारा दर्ज किए गए झूठे दहेज और घरेलू हिंसा के मामलों को कोर्ट ने क्रूरता मानते हुए पति की तलाक की अर्जी मंजूर कर ली।
- Advertisement -
भरण-पोषण का आदेश:
पत्नी ने भरण-पोषण और स्त्रीधन की वापसी की मांग की। कोर्ट ने पति को 14.50 लाख रुपये एकमुश्त भरण-पोषण राशि देने का आदेश दिया। हालांकि, स्त्रीधन के मामले में पत्नी सबूत पेश नहीं कर सकी, जिसके कारण उसकी अर्जी खारिज कर दी गई।

