अजमेर शरीफ की दरगाह, जो सूफी इस्लाम का सबसे महत्वपूर्ण स्थल माना जाता है, इन दिनों एक विवाद के कारण चर्चा में है। दरगाह को लेकर एक याचिका दायर की गई है जिसमें दावा किया गया है कि यहाँ पहले एक हिंदू मंदिर था। इस मामले को लेकर हिंदू सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष विष्णु गुप्ता ने अदालत में याचिका दाखिल की है। इस विवाद में एक किताब भी चर्चा का विषय बन गई है।
क्या है किताब में?
यह किताब, अजमेर हिस्टोरिकल एंड डिस्क्रिप्टिव, 1911 में लिखी गई थी, और इसमें दावा किया गया है कि अजमेर शरीफ दरगाह स्थल पर पहले महादेव मंदिर था। इस किताब के अनुसार, यहाँ एक ब्राह्मण दंपत्ति पूजा-अर्चना करते थे। इसके अतिरिक्त, अन्य तथ्य भी इस बात की पुष्टि करते हैं कि पहले इस स्थल पर शिव मंदिर था।

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किताब के लेखक कौन हैं?
इस किताब के लेखक हरबिलास शारदा थे, जो जोधपुर हाईकोर्ट में सीनियर जज रहे थे। उन्होंने 1911 में यह किताब लिखी थी और इस पर उनके नाम से अजमेर में एक सड़क भी है।
दरगाह का इतिहास
अजमेर में स्थित ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह मुस्लिम समुदाय के लिए अत्यंत पवित्र स्थल है। ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती 1143 में अफगानिस्तान के हेरात प्रांत में जन्मे थे और भारत आए थे। वे मुस्लिम और हिंदू समुदाय के बीच सद्भाव की मिसाल माने जाते हैं।
दरगाह का निर्माण
यह दरगाह मुग़ल सम्राट हुमायूं द्वारा बनवायी गई थी, और बाद में अकबर, शाहजहाँ और जहांगीर ने इसे और विकसित किया।
कितना सच है मंदिर होने का दावा?
किताब के हवाले से दावा किया गया है कि इस स्थल पर शिव मंदिर था, लेकिन दरगाह के इतिहास और उसके धार्मिक महत्व को देखते हुए यह दावा अभी तक कोई ठोस प्रमाण नहीं प्राप्त कर सका है।
दरगाह की धार्मिक महत्वता
अजमेर दरगाह सभी धर्मों के लोगों के लिए एक पवित्र स्थल है, जहाँ लोग आकर अपनी मन्नतें पूरी करने के लिए प्रार्थना करते हैं। यहाँ बॉलीवुड सितारे, राजनेता और आम जनता अपनी श्रद्धा अर्पित करने आते हैं।
बावजूद इसके विवाद और विवादों के बीच, दरगाह का महत्व वैसा ही बना हुआ है जैसा पहले था।

