सुप्रीम कोर्ट ने 42वें संविधान संशोधन से जुड़े ‘धर्मनिरपेक्ष’ और ‘समाजवाद’ शब्द हटाने की मांग वाली याचिकाओं को खारिज कर दिया। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली बेंच ने कहा कि ये शब्द संविधान की मूल संरचना को प्रभावित नहीं करते। अदालत ने तर्क दिया कि अनुच्छेद 368 के तहत संसद को संविधान में संशोधन का अधिकार है, जिसमें प्रस्तावना भी शामिल है।
याचिकाकर्ताओं, जिनमें पूर्व सांसद सुब्रमण्यम स्वामी और अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन शामिल थे, ने कहा कि 1976 में आपातकाल के दौरान जनसुनवाई के बिना यह संशोधन किया गया। उन्होंने दावा किया कि इन शब्दों को जोड़ने से विचारधारात्मक स्वतंत्रता प्रभावित हो सकती है।
सीजेआई ने स्पष्ट किया कि ‘धर्मनिरपेक्षता’ और ‘समाजवाद’ के अर्थ भारतीय संदर्भ में अलग हैं। ये शब्द एक कल्याणकारी राज्य का प्रतिनिधित्व करते हैं, जहां समानता और जनकल्याण को प्राथमिकता दी जाती है। सुप्रीम कोर्ट ने 1994 के एसआर बोम्मई केस में ‘धर्मनिरपेक्षता’ को संविधान की मूल संरचना का हिस्सा माना था।
1976 में इंदिरा गांधी सरकार ने 42वें संविधान संशोधन के तहत ‘समाजवादी’, ‘धर्मनिरपेक्ष’, और ‘अखंडता’ जैसे शब्द प्रस्तावना में जोड़े थे, जिससे भारत को ‘संप्रभु, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणराज्य’ घोषित किया गया। अदालत ने कहा कि ये शब्द भारतीय संविधान की भावना को मजबूत करते हैं।

