इस साल फ़रवरी में अनुरा कुमारा दिसानायके की भारत यात्रा ने किसी को भी यह नहीं सोचा था कि वह करीब सात महीने बाद श्रीलंका के राष्ट्रपति बन जाएंगे। भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने उस मुलाक़ात पर ख़ुशी जताई थी, जिसमें द्विपक्षीय संबंधों को और गहरा करने पर चर्चा की गई थी।
अब, 22 सितंबर को हुए चुनाव परिणामों में वामपंथी नेता अनुरा कुमारा दिसानायके ने जीत दर्ज की है। वह जनता विमुक्ति पेरामुना (जेवीपी) के नेता हैं और नेशनल पीपल्स पावर (एनपीपी) गठबंधन से चुनाव में उतरे थे। 2019 के राष्ट्रपति चुनाव में उन्हें महज़ 3% वोट मिले थे, जबकि इस बार पहले राउंड में उन्हें 42.31% वोट मिले और उनके प्रतिद्वंद्वी सजीथ प्रेमदासा को 32.76% वोट मिले।
जीत के बाद, श्रीलंका में भारत के उच्चायुक्त संतोष झा ने उन्हें बधाई दी, और प्रधानमंत्री मोदी ने भी उन्हें बधाई दी, यह कहते हुए कि भारत की “नेबरहुड फर्स्ट पॉलिसी” में श्रीलंका का विशेष स्थान है।
दिसानायके, जो पहले राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे के मुखर आलोचक रहे हैं, ने खुद को भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ लड़ने वाले नेता के रूप में प्रस्तुत किया। अब राष्ट्रपति बनने के बाद, उनके सामने आर्थिक संकट, भ्रष्टाचार, और जातीय तनाव जैसी चुनौतियाँ हैं।
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भारत के साथ उनके संबंधों को लेकर कई सवाल उठते हैं, क्योंकि उनकी वामपंथी विचारधारा आमतौर पर चीन के करीब मानी जाती है। हालांकि, प्रोफ़ेसर हर्ष वी पंत का मानना है कि हाल के वर्षों में दिसानायके के बयानों में संतुलन आया है। वह सुशासन और गुट-निरपेक्षता पर ज़ोर दे रहे हैं, जो कि उनकी चुनावी जीत के मुख्य कारण बने।
चेन्नई के प्रोफ़ेसर ग्लैडसन ज़ेवियर और जाफना यूनिवर्सिटी के डॉ. अहिलन कदिरगामर का मानना है कि अनुरा कुमारा दिसानायके की नई सरकार भारत के साथ सकारात्मक संबंध बनाए रखने की कोशिश करेगी, क्योंकि श्रीलंका को आर्थिक मदद की आवश्यकता बनी रहेगी।
इस तरह, श्रीलंका की नई राजनीतिक दिशा और अनुरा कुमारा दिसानायके की विदेश नीति के निर्णय भारत के लिए महत्वपूर्ण होंगे।

