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Khabar21 > Blog > बीकानेर > लंग कैंसर के प्रति जागरूकता फैलाने वाले पत्रकार रवि प्रकाश का निधन
बीकानेर

लंग कैंसर के प्रति जागरूकता फैलाने वाले पत्रकार रवि प्रकाश का निधन

editor
editor Published September 21, 2024
Last updated: 2024/09/21 at 12:52 PM
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झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने रवि प्रकाश के निधन पर दुख जताया है. उन्होंने एक्स पर एक पोस्ट में लिखा है, “ज़िंदादिल इंसान हमेशा अमर रहते हैं. आप बहुत याद आएंगे रवि भाई…” उन्होंने ये भी कहा है कि रवि प्रकाश के पार्थिव शरीर को पूरे सम्मान के साथ वापस झारखंड लाया जाएगा और इसके लिए उन्होंने दिशानिर्देश दे दिए हैं.

इसी महीने रवि प्रकाश को वर्ल्ड लंग कैंसर कांफ़्रेंस (डब्ल्यूसीएलसी-2024) में पेशेंट एडवोकेट एजुकेशनल अवॉर्ड से सम्मानित किया गया था.

ये पुरस्कार समारोह अमेरिका के सैन डिएगो में सात सितंबर से शुरू हुआ था. इस साल ये पुरस्कार पाने वाले वह भारत के इकलौते व्यक्ति थे.

लंग कैंसर पर काम करने वाली दुनिया की प्रतिष्ठित संस्था इंटरनेशनल एसोसिएशन फॉर द स्टडी ऑफ लंग कैंसर (आईएएसएलसी) हर साल यह पुरस्कार विश्व के उन चुनिंदा लोगों को देती है, जो अपने-अपने देश में मरीज़ों की आवाज़ बन चुके हैं.

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इस साल भारत से रवि के अलावा यह पुरस्कार दुनिया के 9 और लोगों को दिया गया. इनमें ऑस्ट्रेलिया और मैक्सिको के 2-2, अमेरिका, इटली, यूके (इंग्लैंड), नाइजीरिया और थाइलैंड से 1-1 पेशेंट एडवोकेट शामिल रहे.

सैन डिएगो कन्वेंशन सेंटर में आयोजित समारोह में करीब 100 देशों के प्रतिनिधियों और आईएएसएलसीकी मौजूदगी में रवि को यह पुरस्कार दिया गया.

रवि प्रकाश जनवरी, 2021 से लंग कैंसर के चौथे स्टेज के मरीज़ थे. अब तक उनकी बीमारी दो बार प्रोग्रेस कर चुकी थी और उनके फेफड़ों का कैंसर मस्तिष्क तक पहुँच गया था.

साल 2021 के जनवरी महीने में रवि प्रकाश को लंग कैंसर होने की बात पता चला थी.

इसके बाद इस घातक बीमारी से लड़ने की उनकी जंग शुरू हुई और इस दौरान मुंबई के टाटा कैंसर इंस्टीट्यूट में उनका लंबा इलाज चला.

राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश ने भी रवि प्रकाश के निधन पर दुख जताया है.

उन्होंने एक ट्वीट में लिखा, “रवि प्रकाश नहीं रहे. मन व्यथित है. अद्भुत प्रतिभावान पत्रकार. जीवट, कर्मठ, सरोकारी व्यक्तित्व. हमने कुछ समय तक पत्रकारिता में साथ काम किया. बहादुरी से कैंसर से लड़ते हुए इंसानी धर्म व मानवीय सरोकार की मिसाल पेश कर दुनिया से विदा हुए रवि प्रकाश. रवि प्रकाश की हमेशा याद आएगी.”

रवि प्रकाश ने बताया था कि वो धूम्रपान नहीं करते थे फिर भी उन्हें लंग कैंसर हुआ और उनकी ये धारणा टूट गई कि सिर्फ धूम्रपान करने वालों को ही लंग कैंसर होता है.

हालांकि इलाज 2021 के फ़रवरी में ही शुरू हो गया लेकिन व्यापक जांच के बाद पता चला कि उन्हें चौथे स्टेज का लंग कैंसर है. डॉक्टरों ने बताया था कि उनके पास 18 महीने का वक्त है.

लेकिन रवि प्रकाश ने अदम्य जीवटता का परिचय दिया और भारत में लंग कैंसर के मरीजों के सामने आने वाले दिक्कतों पर अलग अलग प्लेटफ़ॉर्म पर बोलते, लिखते रहे और जागरूकता फैलाते रहे.

उन्होंने कैंसर को भारत में महामारी घोषित कर नोटिफ़ाइड बीमारी की श्रेणी में रखे जाने के लिए लगातार लिखा.

उन्होंने कैंसर की दवाइयों को क़ीमत को लेकर भी काफ़ी कुछ लिखा.

महंगे इलाज को लेकर उन्होंने लिखा, “भारत में बेहतर इलाज की सुविधाएं हैं लेकिन उनका खर्च अधिक है. मुझे एक दवा के बारे में बताया गया जिसमें 30 टैबलेट की क़ीमत पांच लाख रुपये थी. एक महीने की दवा खरीदने पर दो महीने की मुफ़्त मिल रही थी. यानी टार्गेटेड थेरेपी में तीन महीने में पांच लाख रुपये का खर्च.”

आर्थिक हालात को देखते हुए उन्हें इस इलाज़ की बजाय दूसरे तरीके पर जाना पड़ा.

उन्होंने लिखा, “साल का खर्च 20 लाख रुपये. मैंने वह दवा नहीं ली, क्योंकि मेरी आर्थिक हैसियत उस दवा के खरीद पाने लायक नहीं थी.”

पिछले जून में ही जांच में पता चला कि उनका कैंसर मस्तिष्क में भी फैल चुका था.

उनका एक बेटा है जो आईआईटी दिल्ली से बीटेक की पढ़ाई कर रहा है. वहीं, उनकी पत्नी संगीता इस पूरे संघर्ष में उनके साथ हर कदम पर दिखीं.

रवि प्रकाश साल 1998 में मोतिहारी में प्रभात ख़बर से जुड़े थे. इसके बाद वह पटना आ गए.

साल 2001 में नेपाल में राजशाही परिवार हत्याकांड हुआ और रवि प्रकाश उस वक्त प्रभात खबर के स्ट्रिंगर हुआ करते थे. उस समय प्रधान संपादक हरिवंश ने उन्हें पूरी घटना की कवरेज के लिए नेपाल भेजा.

साल 2006 में उन्हें प्रभात खबर के देवघर एडिशन का स्थानीय संपादक बनाया गया. अगले ही साल यानी 2007 में वह रांची आ गए. 2009 में उन्होंने आईनेक्स्ट के साथ पारी शुरू की और इसे लॉन्च करवाया और एक साल बाद पटना आ गए.

साल 2011 में वह दैनिक भास्कर से जुड़े और ग्वालियर गए. हालांकि, ये पारी लंबी नहीं चली और इसी साल वह कोलकाता दैनिक जागरण का हिस्सा बने. साल 2012 में वह दोबारा आईनेक्स्ट में आए लेकिन इस बार रांची के संपादक बनकर. साल 2014 में उन्होंने इस पारी को विराम दिया और स्वतंत्र पत्रकार के तौर पर काम करने लगे.


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