


कथित शराब घोटाले में सुप्रीम कोर्ट से ज़मानत मिलने के बाद, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल 17 सितंबर, मंगलवार को अपने पद से इस्तीफ़ा देने की घोषणा कर चुके हैं।
हालांकि, 21 मार्च 2024 को गिरफ़्तार होने और तिहाड़ जेल में रहने के दौरान केजरीवाल ने पद नहीं छोड़ा था.
आम आदमी पार्टी का कहना है कि केजरीवाल जनता से ‘ईमानदारी का सर्टिफ़िकेट’ लेकर ही फिर से पद पर लौटेंगे.
केजरीवाल दिल्ली के उप-राज्यपाल वीके सक्सेना से 17 सितंबर की शाम मुलाक़ात करेंगे और इस दौरान वो अपना इस्तीफ़ा सौंप देंगे.
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हालांकि, इस्तीफ़ा देने की घोषणा वो दो दिन पहले ही कर चुके हैं.
सुनीता केजरीवाल पर क्या चर्चा
उपराज्यपाल से मुलाक़ात से पहले, केजरीवाल मंगलवार को पार्टी के विधायकों के साथ बैठक करेंगे. इस बैठक में नए मुख्यमंत्री का नाम तय हो जाएगा.
अरविंद केजरीवाल ने सोमवार को पार्टी के सभी वरिष्ठ नेताओं और मंत्रियों से एक-एक कर मुलाक़ात की है और उनकी राय जानी है.
सोमवार को आम आदमी पार्टी की संसदीय मामलों की समिति की बैठक भी हुई थी.
दिल्ली में नया मुख्यमंत्री होगा, ये स्पष्ट है, लेकिन ये चेहरा कौन होगा इसे लेकर कयास हैं.
आम आदमी पार्टी से जुड़े एक शीर्ष सूत्र के मुताबिक़, सुनीता केजरीवाल को सीएम ना बनाने को लेकर पार्टी में सहमति है.
हालांकि पार्टी नेता सौरभ भारद्वाज बीबीसी से बातचीत में कहते हैं, “बीजेपी ने छह महीने पहले ही कह दिया था कि सुनीता केजरीवाल मुख्यमंत्री बन जाएंगी, कयास अपनी जगह हैं लेकिन आम आदमी पार्टी अपनी तरह से काम करती है, जो भी फ़ैसला होगा, जनता के हित में होगा.”
अगला सीएम कौन होगा? इस सवाल के जवाब को टालते हुए सौरभ भारद्वाज कहते हैं, “पार्टी की राजनीतिक मामलों की समिति में चर्चा होगी, फिर विधायकों में चर्चा होगी, उसके बाद ही नाम बताया जाएगा.”
दिल्ली के पूर्व उप-मुख्यमंत्री और पार्टी में नंबर दो के नेता मनीष सिसोदिया भी कथित शराब घोटाला मामले में ज़मानत पर रिहा हैं. केजरीवाल ने ये स्पष्ट कर दिया है कि मनीष सिसोदिया भी मुख्यमंत्री नहीं बनेंगे.
किन नामों पर हो रही है चर्चा
ऐसे में गिने-चुने नाम हैं, जिनके नया मुख्यमंत्री बनने को लेकर चर्चाए हैं. इनमें आतिशी, गोपाल राय और कैलाश गहलोत की सबसे ज़्यादा चर्चा है.
सोमवार को हुई बैठक के बाद आतिशी को इस दौड़ में सबसे आगे माना जा रहा है. केजरीवाल के जेल में रहते हुए आतिशी के पास सर्वाधिक मंत्रालय और विभाग रहे हैं.
उन्होंने मनीष सिसोदिया के शिक्षा मंत्री रहते, शिक्षा क्षेत्र में भी कई अहम काम किए थे और मनीष सिसोदिया की ग़ैर मौजूदगी में शिक्षा विभाग भी संभाला.
आतिशी केजरीवाल की विश्वासपात्र हैं. पार्टी से जुड़े कई सूत्र ये पुष्टि तो नहीं करते कि आतिशी ही सीएम बनने जा रही हैं, लेकिन ये संकेत ज़रूर देते हैं कि मौजूदा परिस्थिति में वो ही सबसे आगे हैं.
केजरीवाल कई बार अपने राजनीतिक फ़ैसलों से हैरान करते रहे हैं. ऐसे में इस संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता कि कोई बिलकुल नया चेहरा सामने आ जाए.
केजरीवाल जब दिल्ली के लिए नया मुख्यमंत्री चुनेंगे तो ये निर्णय लेने में वो सबसे महत्व इसी बात को देंगे कि वो किस पर सर्वाधिक विश्वास कर सकते हैं.
भारतीय राजनीति में ऐसे कई उदाहरण हैं जब सीएम पद छोड़ने वाले नेताओं को अपनी पसंद का सीएम बनाने और फिर से पद पर लौटने के बाद जटिल परिस्थितियों का सामना करना पड़ा.
बिहार में नीतीश कुमार ने जीतन राम मांझी को सीएम बनाया था, झारखंड में हेमंत सोरेन ने कथित भ्रष्टाचार के मामले में जेल जाने से पहले चंपाई सोरेन को मुख्यमंत्री बनाया.
जब नीतीश फिर से पद पर लौटे तो मांझी ने अपनी राहें अलग कर लीं. चंपाई ने भी हेमंत के फिर से मुख्यमंत्री बनने के बाद बीजेपी का दामन थाम लिया.
आम आदमी पार्टी के सामने अहम सवाल
ऐसे में आम आदमी पार्टी के सामने यही सवाल है कि कहीं पार्टी को भी ऐसी परिस्थितियों का सामना तो नहीं करना पड़ेगा.

सौरभ भारद्वाज कहते हैं, “मांझी पार्टी में कुछ नहीं थे, सीएम बनने के बाद उनके तेवर बदल गए और पार्टी तोड़कर अलग हो गए. चंपाई सोरेन एक दूसरा उदाहरण हैं, अस्थायी मुख्यमंत्री बनाने के बावजूद उनके भीतर इतनी महत्वाकांक्षाएं जग जाती हैं कि वो पार्टी के लिए ही समस्या बन जाते हैं. मुझे लगता है कि ये भारतीय प्रजातंत्र की समस्या है, ये इंसानी महत्वाकांक्षा का परिणाम है. हमारी पार्टी में ऐसा ना हो, इसका ख़्याल हम रखेंगे.”
भारद्वाज कहते हैं, “अगला चुनाव ही केजरीवाल के चेहरे पर लड़ा जाएगा. बहुमत अरविंद केजरीवाल के नाम का मिलेगा, ऐसे में हमें नहीं लगता कि कोई दिक़्क़त आनी चाहिए, कोई नाराज़ होगा तो होगा.”
आम आदमी पार्टी ने महाराष्ट्र के साथ दिल्ली में चुनाव कराने की मांग की है.
केजरीवाल के पास विधानसभा को भंग करने का विकल्प भी था, लेकिन पार्टी ऐसा नहीं कर रही है क्योंकि ऐसा करने पर यदि तुरंत चुनावों की घोषणा नहीं होती है तो दिल्ली की सत्ता की बागडोर उप-राज्यपाल के पास होगी.
दरअसल, केजरीवाल ने कहा है कि वो चाहते हैं कि दिल्ली में महाराष्ट्र के साथ चुनाव कराए जाएं. महाराष्ट्र में नवंबर में चुनाव होने हैं जबकि दिल्ली में अगले साल फ़रवरी में चुनाव होने हैं.
सौरभ भारद्वाज कहते हैं, “केजरीवाल पिछले दो साल से भ्रष्टाचार के आरोपों का सामना कर रहे हैं, लेकिन ना ही ट्रायल शुरू हुआ है और ना ही आरोप सिद्ध हुआ है. केजरीवाल ने तय किया है कि वो जनता के बीच जाएंगे, अग्निपरीक्षा देंगे और जनता से पूछेंगे कि वो सीएम के पद पर रहने लायक हैं या नहीं. हम जल्द चुनाव चाहते हैं लेकिन बीजेपी इसके लिए तैयार नहीं है.”
भारद्वाज कहते हैं, “बीजेपी सकते में है कि केजरीवाल ने क्या दांव चल दिया है. हम बीजेपी को चुनौती दे रहे हैं कि मैदान में आइये और चुनाव कराइये, अगर बीजेपी को लगता है कि दिल्ली के लोग केजरीवाल को बेईमान मानते हैं, केजरीवाल के साथ नहीं हैं तो बीजेपी को डर नहीं होना चाहिए, लेकिन बीजेपी चुनाव कराने को तैयार नहीं है, बीजेपी चुनाव से भाग रही है.”
बीजेपी की प्रतिक्रिया
हालांकि भारतीय जनता पार्टी ने कहा है कि वह दिल्ली में चुनावी मैदान में उतरने के लिए पूरी तरह तैयार है.
दिल्ली बीजेपी अध्यक्ष वीरेंद्र सचदेवा ने मीडिया से बातचीत में कहा है, “बीजेपी अक्तूबर में भी चुनाव लड़ने को तैयार है. आम आदमी पार्टी नवंबर में चुनाव कराना चाहती है, लेकिन इतना लंबा इंतज़ार क्यों करना? क्यों ना चुनाव अक्तूबर में ही करा लिए जाएं.”
भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ आंदोलन से राजनीति में आए अरविंद केजरीवाल दिल्ली की नई शराब नीति में हुए कथित भ्रष्टाचार के आरोप में जेल गए थे.
ऐसे में, इन आरोपों ने उस नींव में ही पानी भर दिया है जिस पर केजरीवाल की राजनीतिक इमारत खड़ी है.
विश्लेषक भी मानते हैं कि इस्तीफ़े का फ़ैसला लेकर केजरीवाल अपने आप को नैतिक रूप से मज़बूत पेश करने की कोशिश कर रहे हैं.
वरिष्ठ पत्रकार प्रमोद जोशी कहते हैं, “उन्होंने नैतिक तौर पर यह निर्णय लिया , क्योंकि वो मानते हैं कि उनको जनता का फैसला लेना चाहिए. वो अपनी ईमानदारी पर जनता की मुहर चाहते हैं.”
हालांकि बीजेपी का कहना है कि ये नैतिकता का नहीं बल्कि केजरीवाल की मजबूरी का मामला है.
वीरेंद्र सचदेवा ने मीडिया से कहा, “केजरीवाल का इस्तीफ़ा देने का फ़ैसला मजबूरी की वजह से है, ये नैतिकता की वजह से नहीं है.”
जेल जाते हुए इस्तीफ़ा क्यों नहीं दिया
लेकिन ये सवाल भी है कि जब वो जेल जा रहे थे, तब उन्होंने इस्तीफ़ा क्यों नहीं दिया?
प्रमोद जोशी कहते हैं, “ये तर्क दिया जा सकता है कि ये एक सिद्धांत की लड़ाई रही है कि कैसे एक मुख्यमंत्री को तंग किया जा रहा है. केजरीवाल ये दिखाना चाहते थे कि केंद्र सरकार विपक्ष के मुख्यमंत्रियों को परेशान कर रही है और उन्हें काम नहीं करने दे रही है.”
आम आदमी पार्टी ये दावा करती रही है कि भारतीय जनता पार्टी ने जांच एजेंसियों के दम पर पार्टी को ख़त्म करने की कोशिश की है.
सौरभ भारद्वाज कहते हैं, “केजरीवाल, मनीष सिसोदिया, संजय सिंह, सत्येंद्र जैन, विजय नायर समेत हमारे कई नेताओं को जेल में डाला गया, लेकिन हमारी पार्टी मज़बूत बनी रही. बीजेपी की आम आदमी पार्टी को ख़त्म करने की कोशिश नाकाम रही, आम आदमी पार्टी कभी नहीं टूटी.”
हालांकि, बीजेपी ने आम आदमी पार्टी के इन आरोपों को ये तर्क देकर ख़ारिज किया है कि जांच एजेंसियां भ्रष्टाचार के मामलों की जांच करके अपना काम कर रही हैं.
केजरीवाल का इस्तीफ़ा आम आदमी पार्टी के लिए एक संकट है या मौका?
इस सवाल पर सौरभ भारद्वाज कहते हैं, “ये ना संकट है ना मौका, एक मुख्यमंत्री जो जेल से बाहर आया है, उसने तय किया है कि मैं तब तक मुख्यमंत्री की कुर्सी पर नहीं बैठूंगा जब तक जनता मुझे आशीर्वाद नहीं देगी.”