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Khabar21 > Blog > Congress > हरियाणा चुनाव: इन सीटों पर निर्दलीयों का दबदबा,
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हरियाणा चुनाव: इन सीटों पर निर्दलीयों का दबदबा,

editor
editor Published September 8, 2024
Last updated: 2024/09/08 at 11:27 AM
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  1. हरियाणा चुनाव: इन सीटों पर निर्दलियों का दबदबा, कोई छह तो कोई पांच बार लगातार जीता; पढ़ें कुछ रोचक मुकाबले

स्पेशल डेस्क,

Haryana Assembly Election: हरियाणा में 2019 के विधानभा चुनाव में 90 सदस्यीय विधानसभा में सात निर्दलीय भी चुनाव जीते थे। राज्य में कई सीटें ऐसी भी हैं जहां चार या इससे अधिक बार निर्दलीय उम्मीदवार जीतकर सदन पहुंचे।

Haryana Assembly election seats where independents dominated news in hindi

हरियाणा की इन विधानसभा सीटों पर निर्दलीयों का रहा दबदबा

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विस्तार

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हरियाणा का चुनावी दंगल शुरू हो गया है। यहां की 90 सीटों के लिए 5 अक्तूबर को मतदाता अपने मताधिकार का इस्तेमाल करेंगे और अपने पांच साल का भविष्य तय करेंगे। राज्य में 6 सितंबर से चुनावी प्रक्रिया भी शुरू हो गई है। तमाम सीटों पर उम्मीदवार नामांकन दाखिल कर रहे हैं, जिमसें कई निर्दलीय भी शामिल हैं।

 

 

 

पिछले विधानसभा चुनाव में सात निर्दलीय उम्मीदवार जीतकर सदन पहुंचे थे। इनमें से कई विधायकों ने समय-समय पर मौजूदा सरकार को बचाया है। पिछली बार के जीते कुछ निर्दलीय विधायकों को अब भाजपा और कांग्रेस से भी टिकट मिले हैं। आइये जानते हैं कि हरियाणा की कितनी सीटें हैं, जहां निर्दलीयों का दबदबा रहा है? ऐसी सीटों पर कैसे मुकाबले हुए हैं…

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पुंडरी: यह विधानसभा सीट कैथल जिले में पड़ती है। पुंडरी से मौजूदा विधायक रणधीर सिंह गोलेन हैं, जो 2019 में निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर जीते थे। इस सीट पर लगातार छह बार से निर्दलीय ही जीत रहे हैं और कुल सात बार निर्दलीय जीते हैं। 1968 के विधानसभा चुनाव में पहली बार पुंडरी सीट पर आजाद प्रत्याशी की जीत हुई थी। उस चुनाव में कांग्रेस के तारा सिंह के सामने निर्दलीय ईश्वर सिंह को सफलता मिली थी।

 

इसके बाद 1996 में निर्दलीय उम्मीदवार की जीत हुई। इस चुनाव में नरेंदर शर्मा ने कांग्रेस से उतरे ईश्वर सिंह को शिकस्त दी। ये वही ईश्वर सिंह थे जिन्होंने 1968 में निर्दलीय चुनाव जीता था, लेकिन बाद में कांग्रेस का हिस्सा बन गए थे।

 

2000 में हुए चुनाव में मुख्य मुकाबला दो निर्दलीय प्रत्याशियों के बीच था। इसमें एक निर्दलीय तेजवीर ने दूसरे निर्दलीय नरिंदर को मात दिया था।

 

2004 में निर्दलीय दिनेश कौशिक ने इनेलो की तरफ से उतरे नरेंदर शर्मा ने को शिकस्त दी। अगले चुनाव में दिनेश कौशिक कांग्रेस का चेहरा बनकर उतरे, लेकिन उन्हें निर्दलीय प्रत्याशी सुल्तान के हाथों हार झेलनी पड़ी।

 

बात करें 2014 की तो इस बार दिनेश कौशिक की जीत हुई। इस बार उन्होंने भाजपा की तरफ से उतरे रणधीर सिंह गोलेन को परास्त किया। कौशिक इससे पहले 2004 में भी निर्दलीय ही जीते थे। पिछले विधानसभा चुनाव की बात करें तो इसमें भी एक निर्दलीय को सफलता मिली। रणधीर सिंह गोलेन ने कांग्रेस के सतबीर भाणा को 12824 मतों से शिकस्त दी थी।

नूंह: यह विधानसभा क्षेत्र नूंह जिले में पड़ता है। पहले ही चुनाव में नूंह सीट पर निर्दलीय को सफलता हासिल हुई। 1967 में हुए हरियाणा के पहले चुनाव में नूंह सीट पर आजाद उम्मीदवार रहीम खान ने कांग्रेस के के. अहमद को हराकर जीत दर्ज की थी। इसके बाद 1972 में निर्दलीय ने सफलता दर्ज की और एक बार फिर चेहरा थे रहीम खान। इस चुनाव में रहीम ने कांग्रेस प्रत्याशी खुर हेद अहमद को हराया था।

 

नूंह में 10 साल बाद फिर आजाद उम्मीदवार ने जीत दर्ज की। 1982 में रहीम खान ने कांग्रेस के चेहरे सरदार खान को हराया। 1989 के उपचुनाव में स्वतंत्र उम्मीदवार हसन मोहम्मद को जीत मिली। नूंह में अंतिम बार 2005 में निर्दलीय प्रत्याशी को सफलता हासिल हुई थी। इस चुनाव में आजाद उम्मीदवार हबीब-उर-रहमान ने आफताब अहमद को पटखनी दी थी। इस तरह से नूंह सीट पर एक उपचुनाव समेत कुल पांच बार स्वतंत्र उम्मीदवार को जीत मिली है।

नीलोखेड़ी: यह विधानसभा क्षेत्र करनाल जिले में पड़ता है। नीलोखेड़ी विधानसभा सीट अनुसूचित जाति के उम्मीदवारों के लिए आरक्षित है। यहां के मौजूदा विधायक धर्मपाल गोंदर भी पिछली बार आजाद प्रत्याशी के रूप में सदन पहुंचे थे। नीलोखेड़ी सीट पर अब तक पांच बार निर्दलीय उम्मीदवारों ने झंडे गाड़े हैं।

 

1968 में पहली बार निर्दलीय चंदा सिंह को सफलता मिली थी। इस चुनाव में चंदा ने कांग्रेस की तरफ से उतरे राम स्वरूप गिरी को परास्त किया था। इसके 1982 में फिर आजाद प्रत्याशी जीतकर विधानसभा पहुंचे और वो थे चंदा सिंह। इस चुनाव में उन्होंने कांग्रेस उम्मीदवार शिवराम को शिकस्त दी थी।

 

इसके बाद भी अगले दो विधानसभा चुनावों में भी निर्दलीय प्रत्याशी ने विजय हासिल की लेकिन चेहरा जय सिंह राणा थे। जय सिंह ने 1987 में लोक दल के देवी सिंह को तो 1991 में जनता पा

र्टी के ईश्वर सिंह को मात दिया।


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