जयपुर – कोई भी बुजुर्ग अपनी संपत्ति से बेटे-बहू और किसी रिश्तेदार को अपनी संपत्ति से निष्कासित रखने का अधिकार रखते हैं। बुजुर्गों के प्रार्थना पत्र पर मेंटेनेंस ट्रिब्यूनल (एसडीओ कोर्ट) निष्कासन का आदेश दे सकती है। यह बात राजस्थान हाईकोर्ट ने तय कर दी है। हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश एजी मसीह और जस्टिस समीर जैन की खंड पीठ ने करीब 4 साल पुराने रेफरेंस को तय करते हुए यह बात कही। रेफरेंस आदेश में कोर्ट ने कहा कि मेंटेनेंस ट्रिब्यूनल को निष्कासन का आदेश देने का अधिकार है, लेकिन यह उसके स्वविवेक पर होगा कि वह ऐसा आदेश देता है या नहीं। हालांकि हाईकोर्ट ने यह भी साफ किया है कि निष्कासन का आदेश देते समय ट्रिब्यूनल को सभी तथ्यों को ध्यान में रखना होगा। घरेलू हिंसा सहित अन्य मामले अगर समानांतर चल रहे हैं तो उन्हें ध्यान में रखते हुए आदेश पारित करना होगा। दरअसल, ओमप्रकाश सैनी बनाम मनभरी देवी के मामले में एकल पीठ ने यह रेफरेंस 12 सितम्बर 2019 को खंड पीठ को भेजा था। इस मामले में मेंटेनेंस ट्रिब्यूनल ने मनभरी देवी के पक्ष में फैसला देते हुए उनके नाती (दोहिते) ओमप्रकाश को उनकी संपत्ति से निष्कासित कर दिया था। इसके खिलाफ ओमप्रकाश ने हाईकोर्ट में रिट दायर की थी।
यह था ओमप्रकाश सैनी बनाम मनभरी देवी मामला
मामले में ओमप्रकाश के एडवोकेट नितिन जैन ने बताया कि मनभरी देवी याचिकाकर्ता ओमप्रकाश सैनी की नानी हैं। ओमप्रकाश के नाना के कोई बेटा नहीं था। उनके दो बेटियां ही थी। नाना की मौत के बाद उनकी संपत्ति कानून के अनुसार उनकी नानी, ओमप्रकाश की मां और उनकी मौसी में तीन तिहाई हिस्सों में बांटी जानी चाहिए। ओमप्रकाश जन्म से अपनी नानी के साथ ही रहते हैं और उनकी शादी भी नानी के घर से ही हुई थी।
उन्होंने बताया कि ओमप्रकाश की मां की मौत के बाद उनकी नानी व मौसी उन्हें संपत्ति से बेदखल करना चाहती हैं। इसको लेकर उन्होंने सीनियर सिटीजन एक्ट में एक प्रार्थना पत्र एसडीओ के यहां लगाया। इस पर 2017 में एसडीओ कोर्ट ने ओमप्रकाश को निष्कासित करने के आदेश दे दिए। इस आदेश को हमने सितंबर 2018 में हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। हाईकोर्ट ने एसडीओ के आदेश पर स्टे दिया था, जो आज भी जारी है। रेफरेंस के दौरान भी हमने खंड पीठ में कहा कि पैतृक संपत्ति और बाय बर्थ के मामलों में निष्कासन का अधिकार मेंटेनेंस ट्रिब्यूनल का नहीं हैं।

