कक्षा में तनाव की बढ़ती तस्वीर: क्या कहती है स्टूडेंट सिंक इंडेक्स-2026 रिपोर्ट
देश के स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों के लिए पढ़ाई अब सिर्फ किताबों तक सीमित नहीं रह गई है। परीक्षा, भविष्य और उम्मीदों का दबाव कक्षा के माहौल को लगातार भारी बना रहा है। स्टूडेंट सिंक इंडेक्स-2026 की हालिया रिपोर्ट इस बात की ओर इशारा करती है कि आज की कक्षाओं में बैठा हर दूसरा छात्र किसी न किसी तरह के मानसिक तनाव से गुजर रहा है।
रिपोर्ट के अनुसार, 63 प्रतिशत विद्यार्थी रोजाना तनाव महसूस करते हैं, जबकि 29 प्रतिशत छात्र ऐसे हैं जिन्हें हफ्ते में एक से ज्यादा बार चिंता घेर लेती है। यह आंकड़े बताते हैं कि तनाव अब अपवाद नहीं, बल्कि छात्रों की दिनचर्या का हिस्सा बनता जा रहा है।
शिक्षक बन रहे हैं पहली उम्मीद
रिपोर्ट में यह भी सामने आया है कि 66 प्रतिशत विद्यार्थी दबाव, चिंता और थकान की शिकायत लेकर सीधे शिक्षकों तक पहुंचते हैं। कक्षा में विषय से जुड़े सवालों की तुलना में अब भावनात्मक परेशानियों से जुड़े सवाल ज्यादा सुनाई देने लगे हैं। इससे साफ है कि छात्र शिक्षकों को केवल पढ़ाने वाला नहीं, बल्कि भरोसेमंद सहारा भी मानने लगे हैं।
हालांकि, रिपोर्ट यह भी बताती है कि कई बार तनाव को पहचान लेने के बावजूद उसे गंभीरता से नहीं लिया जाता। पाठ्यक्रम का बोझ, पढ़ाने के पुराने तरीके और समय की कमी छात्रों की चिंता को और बढ़ा देती है।
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तनाव के प्रमुख कारण क्या हैं?
स्टूडेंट सिंक इंडेक्स-2026 में छात्रों के तनाव के पीछे कई कारण सामने आए हैं:
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42 प्रतिशत विद्यार्थी अभिभावकों की ऊंची उम्मीदों के कारण दबाव महसूस करते हैं।
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43 प्रतिशत छात्र दोस्तों से जुड़े मुद्दों, सामाजिक दबाव या करियर की अनिश्चितता के कारण तनाव में रहते हैं।
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18 प्रतिशत विद्यार्थियों के लिए प्रतिस्पर्धा सबसे बड़ा तनाव कारक है।
इन कारणों का सीधा असर बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य, आत्मविश्वास और सीखने की क्षमता पर पड़ रहा है।
एआई में छात्र आगे, स्कूल पीछे
रिपोर्ट का एक अहम पहलू यह भी है कि आज के विद्यार्थी पढ़ाई में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस टूल्स का तेजी से इस्तेमाल कर रहे हैं। इसके उलट, कई स्कूल अब भी तकनीकी बदलावों के साथ कदम नहीं मिला पा रहे हैं। अभिभावकों का मानना है कि डिजिटल और एआई आधारित लर्निंग में छात्रों को संस्थागत मार्गदर्शन की जरूरत है, जो फिलहाल कम दिखाई देता है।
अंकों पर सफलता, सीख पर कम ध्यान
सर्वे के मुताबिक, अधिकतर छात्रों के लिए सफलता का मतलब अच्छे नंबर और प्रतिष्ठित स्कूल या कॉलेज में दाखिला है। बहुत कम विद्यार्थी सफलता को जीवन में उपयोगी कौशल और सीख से जोड़कर देखते हैं। यही सोच पढ़ाई को आनंद की जगह बोझ बना रही है।
मानसिक स्वास्थ्य पर बढ़ती बातचीत
एक सकारात्मक संकेत यह है कि स्कूलों में अब मानसिक स्वास्थ्य को लेकर बातचीत बढ़ रही है। 66 प्रतिशत शिक्षक मानते हैं कि छात्र अब चिंता, उदासी और भावनात्मक समस्याओं पर खुलकर बात करने लगे हैं। फिर भी, 45 प्रतिशत बच्चे पढ़ाई और अतिरिक्त वर्कलोड से परेशान बताए गए हैं, जो सुधार की जरूरत को साफ दर्शाता है।

