बीकानेर के पीबीएम अस्पताल में सीटी-एमआरआई मशीन स्थापना के लिए जारी करीब 100 करोड़ रुपये के टेंडर को लेकर एक बार फिर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं। आरोप है कि टेंडर की शर्तें इस तरह से तैयार की गई हैं, जिससे केवल एक ही कंपनी को फायदा मिले और बाकी अंतरराष्ट्रीय स्तर की बड़ी कंपनियां स्वतः ही बाहर हो जाएं। इसी वजह से यह टेंडर पिछले दो महीनों से लटका हुआ है और सरकार को संभावित आर्थिक नुकसान उठाना पड़ रहा है।
17 साल पुरानी मोनोपॉली का आरोप
पीबीएम अस्पताल में सीटी-एमआरआई सेवाएं पिछले साढ़े 17 वर्षों से पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप मॉडल के तहत एक ही फर्म के पास रही हैं। आरोप है कि टेंडर अवधि समाप्त होने के बाद भी बार-बार विस्तार देकर उसी व्यवस्था को बनाए रखा गया। अब 10 वर्षों के लिए जारी नए टेंडर में भी वही स्थिति दोहराने की कोशिश की जा रही है, जहां सिमंस कंपनी से जुड़ी प्रतिनिधि फर्म को आगे बढ़ाने के आरोप लग रहे हैं।
तकनीकी शर्तों पर उठे सवाल
अन्य कंपनियों का दावा है कि टेंडर में ऐसी विशेष तकनीकी शर्तें जोड़ी गई हैं, जिन्हें केवल एक ही कंपनी पूरा कर सकती है। जबकि मेडिकल इमेजिंग क्षेत्र में वर्षों से काम कर रही कई नामी कंपनियां इन शर्तों के कारण प्रतियोगिता से बाहर हो रही हैं। सवाल यह भी उठ रहा है कि जब ये कंपनियां देश-विदेश में सफलतापूर्वक सेवाएं दे रही हैं, तो फिर उन्हें अयोग्य कैसे ठहराया जा सकता है।
आपत्ति के बाद भी नहीं बदली स्थिति
टेंडर प्रक्रिया के दौरान जब कंपनियों ने आपत्ति दर्ज कराई, तो एक अपील पर सुनवाई आयोजित की गई। इस बैठक में मेडिकल कॉलेज और अस्पताल प्रशासन के वरिष्ठ अधिकारी तथा कंपनियों के प्रतिनिधि मौजूद रहे, लेकिन कोई ठोस समाधान नहीं निकल सका। इसके बाद जारी किए गए संशोधित टेंडर में भी विवादित शर्तें लगभग जस की तस रखी गईं, जिससे पक्षपात के आरोप और गहरे हो गए।
- Advertisement -
जयपुर पहुंचा मामला, आज अहम सुनवाई
टेंडर से जुड़ी शिकायतें अब जयपुर स्थित चिकित्सा शिक्षा निदेशालय तक पहुंच चुकी हैं। शिकायत में आरोप लगाया गया है कि निष्पक्ष प्रतिस्पर्धा को जानबूझकर सीमित किया जा रहा है, जिससे सरकार को करोड़ों रुपये का नुकसान हो सकता है। आज होने वाली सुनवाई को लेकर सभी संबंधित पक्षों की निगाहें टिकी हुई हैं।
सरकारी नुकसान की आशंका
कंपनियों का कहना है कि यदि सभी योग्य कंपनियों को समान अवसर दिया जाता, तो प्रतिस्पर्धा के चलते सरकार को हर महीने करीब एक करोड़ रुपये तक का अतिरिक्त लाभ हो सकता था। लेकिन एक ही कंपनी को लाभ पहुंचाने की कोशिश में राजस्व का बड़ा हिस्सा गंवाने का खतरा है।
प्रशासन के जवाब
मेडिकल कॉलेज और पीबीएम अस्पताल प्रशासन ने आरोपों को खारिज किया है। अधिकारियों का कहना है कि टेंडर की शर्तें समिति द्वारा तय की गई हैं और सभी कंपनियां उन्हें पूरा करने में सक्षम हैं। उनका दावा है कि टेंडर प्रक्रिया पूरी तरह नियमों के अनुसार है और अपील का निपटारा होने के बाद ही आगे की कार्रवाई की जाएगी।
पारदर्शिता पर बड़ा सवाल
हालांकि, लगातार उठ रहे सवालों और बार-बार विवादों में घिरने से यह टेंडर एक बार फिर सुर्खियों में है। अब देखना यह होगा कि जयपुर में होने वाली सुनवाई के बाद क्या टेंडर प्रक्रिया में पारदर्शिता बहाल हो पाती है या फिर यह मामला और लंबा खिंचता है।

