राजस्थान में अरावली पर्वतमाला को लेकर जारी सियासी विवाद तेज हो गया है। अशोक गहलोत के “सेव अरावली” अभियान के जवाब में भाजपा के वरिष्ठ नेता राजेंद्र राठौड़ ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर दावा किया कि अरावली के 90 प्रतिशत नष्ट होने का कथित आंकड़ा पूरी तरह भ्रामक और तथ्यहीन है। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देश, वैज्ञानिक मैपिंग और कड़े नियमों के तहत अरावली पूरी तरह सुरक्षित है।
राठौड़ ने बताया कि अरावली क्षेत्र का लगभग 25 प्रतिशत हिस्सा हिरसा अभ्यारण्य, राष्ट्रीय उद्यान और आरक्षित वनों में आता है, जहां खनन पूरी तरह प्रतिबंधित है। पूरे क्षेत्र में केवल 2.56 प्रतिशत हिस्सा नियंत्रित और कड़े नियमों के तहत खनन के लिए आरक्षित है। उन्होंने यह भी बताया कि सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया है कि इंडियन काउंसिल ऑफ फॉरेस्टरी रिसर्च एंड एजुकेशन (ICFRE) की वैज्ञानिक मैपिंग और सस्टेनेबल माइनिंग मैनेजमेंट प्लान बनने तक कोई नया खनन पट्टा जारी नहीं किया जा सकता।
राजेंद्र राठौड़ ने 100 मीटर ऊंचाई के मानदंड को लेकर फैलाई जा रही भ्रांतियों को भी खारिज किया। उन्होंने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा स्वीकृत परिभाषा के अनुसार सभी ऊंची पहाड़ियाँ और उनके बीच के 500 मीटर के क्षेत्र खनन से पूरी तरह बाहर हैं। राठौड़ ने कहा कि राजस्थान के राजसमंद में 98.9 प्रतिशत, उदयपुर में 99.89 प्रतिशत, गुजरात के साबरकांठा में 89.4 प्रतिशत और हरियाणा के महेंद्रगढ़ में 75.07 प्रतिशत पहाड़ी क्षेत्र खनन से संरक्षित हैं।
वहीं, अशोक गहलोत ने भाजपा के आरोपों का पलटवार करते हुए कहा कि भाजपा सरकार खनन माफियाओं के लिए नरम रवैया अपना रही है। उन्होंने दावा किया कि कांग्रेस सरकार (2019-2024) ने अवैध खनन रोकने के लिए 4,206 FIR दर्ज कीं और 464 करोड़ रुपये का जुर्माना वसूला, जबकि वर्तमान सरकार के पहले साल में केवल 508 FIR दर्ज हो पाईं। गहलोत ने अरावली को राजस्थान की जीवनरेखा बताते हुए कहा कि इसे बचाना केवल पर्यावरण का मामला नहीं, बल्कि मरुस्थलीकरण रोकने की जिम्मेदारी भी है।
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सियासी बयानबाजियों के बीच विशेषज्ञों का मानना है कि अरावली की सुरक्षा कानून, न्यायालय और वैज्ञानिक मैपिंग से सुनिश्चित है। हालांकि राजनीतिक दल इसे चुनावी मुद्दा बनाने में लगे हैं।

