सुप्रीम कोर्ट की विंटर वेकेशन शुरू होते ही अर्जेंट मामलों की सुनवाई को लेकर बड़ा सवाल खड़ा हो गया है। चार जनवरी तक नियमित सुनवाई बंद रहने के बीच वकीलों ने जरूरी मामलों को तत्काल सूचीबद्ध करने की मांग उठाई, लेकिन इस पर भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) सूर्यकांत ने साफ और सख्त रुख अपनाया है। उन्होंने स्पष्ट कर दिया कि हर मामले को “अर्जेंट” मानकर सुनवाई नहीं की जा सकती।
छुट्टियों से पहले क्यों बढ़ी चिंता
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट शुक्रवार से चार जनवरी तक 17 दिन की विंटर वेकेशन पर जा रहा है और नियमित कामकाज अब 5 जनवरी 2025 से शुरू होगा। इसी कारण कई वकीलों ने शुक्रवार को ही अपने मामलों को अर्जेंट बताकर सूचीबद्ध करने की मांग की। उनका तर्क था कि लंबी छुट्टियों के दौरान जरूरी मामलों में देरी से न्याय प्रभावित हो सकता है।
CJI का दो टूक जवाब
इन मांगों पर CJI सूर्यकांत ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि शुक्रवार को किसी भी नए मामले की लिस्टिंग की अनुमति नहीं दी जाएगी। उन्होंने बताया कि इस सप्ताह पहले ही अत्यधिक फाइलिंग हो चुकी है और जज भारी दबाव में फाइलें पढ़ रहे हैं। ऐसे में नए मामलों की लिस्टिंग से न्यायिक प्रक्रिया प्रभावित हो सकती है।
- Advertisement -
अर्जेंट सुनवाई के लिए कड़ी शर्त
CJI ने यह भी साफ किया कि छुट्टियों के दौरान किसी मामले को तभी सूचीबद्ध किया जाएगा, जब उसकी वास्तविक अर्जेंसी जांच में सही पाई जाए। साथ ही, वकीलों को उसी दिन बहस के लिए पूरी तरह तैयार रहना होगा। बच्चों की कस्टडी, जमानत या गिरफ्तारी जैसे मामलों में भी रजिस्ट्री पहले यह तय करेगी कि मामला वास्तव में आपात स्थिति से जुड़ा है या नहीं।
यदि जांच में अर्जेंसी प्रमाणित होती है, तो ऐसे मामलों को 22 दिसंबर को होने वाली स्पेशल वेकेशन सिटिंग में सूचीबद्ध किया जा सकता है। उस दिन बेंच बैठेगी या नहीं, इसका फैसला मामलों की संख्या के आधार पर किया जाएगा।
हर अर्जेंसी एक जैसी नहीं
CJI की टिप्पणी से यह संदेश साफ है कि सुप्रीम कोर्ट छुट्टियों के दौरान भी जरूरी मामलों के लिए दरवाजे बंद नहीं कर रहा, लेकिन “अर्जेंट” शब्द का दुरुपयोग बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। वास्तविक आपात स्थिति और सामान्य तात्कालिकता में फर्क किया जाएगा।
दिल्ली हाई कोर्ट में हाइब्रिड मोड
उधर, दिल्ली में प्रदूषण की गंभीर स्थिति को देखते हुए दिल्ली हाई कोर्ट ने भी अहम कदम उठाया है। ग्रैप-4 लागू होने के बावजूद हालात में सुधार न होने पर रजिस्ट्रार जनरल ने सर्कुलर जारी कर वकीलों और पक्षकारों को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए पेश होने की सलाह दी है। फिलहाल दिल्ली हाई कोर्ट हाइब्रिड मोड में काम कर रहा है, यानी शारीरिक और ऑनलाइन दोनों तरह से सुनवाई संभव है।


